उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में मंगलवार को बादल फटने की घटना सामने आई है. हर्षिल क्षेत्र में खीर गंगा गदेरे (गहरी खाई या नाला) का जलस्तर अचानक बढ़ गया, जिससे धराली गांव में भारी नुक़सान हुआ है.
उत्तरकाशी के ज़िलाधिकारी प्रशांत आर्य ने मीडिया को बताया, कि अब तक की जानकारी के अनुसार चार लोगों की मौत हुई है और कुछ संपत्तियों के नुक़सान की भी सूचना मिली है.
वहीं डीआईजी एनडीआरएफ़ मोहसेन शाहेदी ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बताया है कि शुरुआती जानकारी के मुताबिक़, "घटना में 40 से 50 घर बह गए हैं और 50 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं."
इस बीच धराली के स्थानीय लोगों का दावा है कि तबाही का स्तर बेहद बड़ा है और इससे जान-माल का व्यापक नुक़सान हुआ है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक्स पर पोस्ट कर इस घटना पर दुख जताया है. उन्होंने कहा कि वो वरिष्ठ अधिकारियों के लगातार संपर्क में हैं और स्थिति पर गहन निगरानी रखी जा रही है.
प्रत्यक्षदर्शी ने क्या बताया?धराली गांव की रहने वाली आस्था पवार ने बीबीसी संवाददाता विकास त्रिवेदी से बातचीत में इस भयावह घटना की पूरी आंखों-देखी साझा की.
आस्था बताती हैं, ''अभी मैं धराली में ही हूं. मेरा घर सड़क से थोड़ा दूर है, इसलिए यहां से सब दिख रहा है कि नीचे कितना नुक़सान हुआ है.''
''यहां से मैंने अपनी आंखों के सामने कई होटल बहते देखे. ऐसा नहीं है कि सब कुछ एक ही बार में बह गया. जो पहली लहर आई थी, वह बहुत ज़ोरदार और भयानक थी. वो वीडियो आपने शायद देखे होंगे. उसके बाद भी हर 10–15 या 20 मिनट में मलबे की और लहरें आती रहीं. छोटे-छोटे थपेले आ रहे हैं, लेकिन वे भी होटल अपने साथ ले जा रहे हैं. एक-एक, दो-दो होटल बह रहे हैं.''
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क्या सरकार या प्रशासन की तरफ़ से पहले कोई जानकारी दी गई थी? इस बारे में आस्था जानकारी नहीं होने की बात कहती हैं.
आस्था कहती हैं, ''हमें कोई वॉर्निंग भी नहीं दी गई थी. छुट्टियां भी नहीं थीं. आज बच्चों की छुट्टी भी नहीं थी. किसी को कोई जानकारी नहीं थी कि इतना बड़ा हादसा होने वाला है. ये घटना दोपहर को हुई. हम छत पर गए थे, वहां से सब कुछ साफ़ दिखाई दे रहा था. जैसे कुछ भी नहीं बचा हो.''
वो बताती हैं कि गांव के ज़्यादातर लोग एक स्थानीय पूजा में शामिल होने की तैयारी कर रहे थे. आस्था ने बताया, ''चार अगस्त की रात भी और पांच अगस्त की सुबह भी पूजा थी. शुक्र है कि ये हादसा चार अगस्त की रात नहीं हुआ, जब पूरा गांव पूजा में शामिल हो रहा था.''
वो वॉर्निंग वाली बात पर जोर देकर कहती हैं, ''अगर कोई वॉर्निंग होती, तो हम पूजा में जाते ही नहीं. अगर कहीं और अलर्ट जारी हुआ हो, तो यहां तक नहीं पहुंचा. यहां सब कुछ नॉर्मल था. स्कूल खुले थे, छुट्टी नहीं थी. कोई नहीं जानता था कि इतनी बड़ी त्रासदी आने वाली है.''
धराली गांव के आस पास क्या-क्या था?जहां ये घटना हुई है, आस्था वहीं की रहने वाली हैं.
वो कहती हैं, ''वहां बहुत बड़े-बड़े होटल थे, तीन-चार मंज़िला होटल. अब उनकी छत तक नहीं दिख रही. इतना भयंकर नुकसान हुआ है कि पूरा मार्केट ख़त्म हो गया है. धराली का बहुत बड़ा बाज़ार था. एक बहुत बड़ा मंदिर था. अब वहाँ कुछ भी नहीं दिख रहा. सब कुछ तबाह हो गया. कल्प केदार मंदिर भी नहीं दिख रहा है.''
धराली गंगोत्री के रास्ते में पड़ता है और ये जगह हर्षिल वैली के पास है. कल्प केदार यहां का स्थानीय मंदिर है, जहां श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं.
चारधाम यात्रा का रास्ता धराली से होकर भी गुज़रता है. ऐसे में श्रद्धालु कई बार धराली के होटलों में भी रुकते हैं.
हर्षिल वैली के बगोरी गांव में रहने वाले करण ने बीबीसी हिंदी को बताया कि वैली के आसपास के इलाक़ों को खाली कराया गया है. लोगों को पास के ऊंचे क्षेत्रों में भेजा जा रहा है, ताकि अगर रात में बारिश हो, तो जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
उत्तराखंड में आई इस बड़ी प्राकृतिक आपदा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर लिखा, "उत्तरकाशी के धराली में हुई इस त्रासदी से प्रभावित लोगों के प्रति मैं अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं. साथ ही सभी पीड़ितों की कुशलता की कामना करता हूं. मुख्यमंत्री पुष्कर धामी जी से बात कर मैंने हालात की जानकारी ली है. राज्य सरकार की निगरानी में राहत और बचाव की टीमें हरसंभव प्रयास में जुटी हैं. लोगों तक मदद पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है."
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाहने बताया कि आईटीबीपी की तीन टीमों को प्रभावित क्षेत्र में भेजा गया है. इसके साथ ही एनडीआरएफ़ की चार टीमें भी घटनास्थल के लिए रवाना की गई हैं.
बादल फटना क्या होता है?मौसम विभाग की परिभाषा के मुताबिक़, एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा भारी बारिश, छोटे इलाक़े (एक से दस किलोमीटर) में हो जाए तो उस घटना को बादल फटना कहते हैं.
कभी-कभी एक जगह पर एक से ज़्यादा बादल फट सकते हैं. ऐसी स्थिति में जान-माल का ज़्यादा नुक़सान होता है जैसा उत्तराखंड में साल 2013 में हुआ था, लेकिन हर भारी बारिश की घटना को बादल फटना नहीं कहते हैं.
यहां ये समझने वाली बात है कि केवल एक घंटे में 10 सेंटीमीटर भारी बारिश की वजह से ज़्यादा नुक़सान नहीं होता, लेकिन आस-पास अगर कोई नदी, झील पहले से है और उसमें अचानक पानी ज़्यादा भर जाता है, तो आस-पास के रिहायशी इलाकों में नुक़सान ज़्यादा होता है.
क्या बादल फटने की घटना सिर्फ़ मानसून में ही होती है?मानसून और मानसून के कुछ समय पहले (प्री-मानसून) इस तरह की घटना ज़्यादा होती है.
महीनों की बात करें तो मई से लेकर जुलाई और अगस्त तक भारत के उत्तरी इलाके में इस तरह का मौसमी प्रभाव देखने को मिलता है.
क्या बादल फटने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है?बादल फटने की घटनाएं एक से दस किलोमीटर की दूरी में छोटे पैमाने पर हुए मौसमी बदलाव की वजह से होती हैं.
इस वजह से इनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है. रडार से एक बड़े एरिया के लिए बहुत भारी बारिश का पूर्वानुमान मौसम विभाग लगा सकता है, लेकिन किस इलाके में बादल फटेंगे, ये पहले से बताना मुश्किल होता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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