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धारावी यानी मिनी इंडिया के विकास की कहानी क्या है? ग्राउंड रिपोर्ट

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Getty Images धारावी की झुग्गियों को हटाकर नया टाउनशिप बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम चल रहा है

नालियों के किनारे बसी झोपड़ियाँ, सँकरी गलियाँ, तरह-तरह के उद्योग और इन सबके बीच रोज़ जन्म लेते हज़ारों-लाखों ख़्वाब.

ये धारावी है- एशिया का सबसे बड़ा स्लम यानी झुग्गी बस्ती. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बसे धारावी का विकास करके उसे नया रूप देने का काम दिन ब दिन तेज़ी से हो रहा है.

छह सौ एकड़ में फैले धारावी के विकास की चर्चा नई नहीं है. ये क़रीब दो दशकों से चल रही है.

अब धारावी की झुग्गियों को हटाकर एक टाउनशिप बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम चल रहा है.  इसका नाम धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट है.

भविष्य की धारावी में करीब 10 लाख से ज़्यादा लोगों के लिए फ्लैट, स्कूल, अस्पताल जैसी कई चीज़ें बनाने की योजना है.

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इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की ज़िम्मेदारी 'नवभारत मेगा डेवलपर्स लिमिटेड' को दी गई है.  इस प्रोजेक्ट में  80%  भागीदारी अदानी ग्रुप की है और 20%  महाराष्ट्र सरकार की.

पहले यह काम  'धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड'  के नाम के तहत हो रहा था.

एक तरफ़ जहाँ कई लोग इस प्रोजेक्ट के बारे में सकारात्मक नज़रिया रखते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ कई के मन में आशंकाएँ भी हैं.

आशंकित लोगों से बात करने से लगता है कि उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है.

ऑस्कर विजेता फ़िल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' या देसी हिप हॉप पर बनी फ़िल्म 'गली बॉय' से मशहूर धारावी की नई तस्वीर और नई कहानी क्या होगी? 

वहाँ रह रहे लोग क्या सोच रहे हैं? बीबीसी हिंदी ने मौक़े पर जाकर इसे जानने और समझने की कोशिश की. यह उसी की रिपोर्ट है.

धारावी का पुनर्विकास कैसे होगा? image Getty Images महाराष्ट्र सरकार और उद्योगपति गौतम अदानी की कंपनी मिलकर धारावी का विकास करेगी

इस प्रोजेक्ट का नाम 'धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट' है. यह महाराष्ट्र सरकार और उद्योगपति गौतम अदानी की कंपनी की साझेदारी के साथ अमल में लाया जाएगा.

सरकार का मानना है कि पुनर्विकास के बाद 10 लाख से ज़्यादा लोग एक बेहतर और सम्मानजनक हालत में ज़िंदगी जी पाएँगे.

इस पुनर्विकास के लिए कोई योग्य है या नहीं, इसके लिए तीन मापदंड तय किए गए हैं:

  • जो लोग एक जनवरी 2000  के पहले से धारावी में ग्राउंड फ़्लोर पर रह रहे हैं, उन्हें धारावी में ही साढ़े तीन सौ स्क्वॉयर फुट के घर दिए जाएँगे. इनसे कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.
  • जो लोग एक जनवरी 2000 से एक जनवरी 2011 के बीच धारावी में ग्राउंड फ़्लोर पर रह रहे हैं, उन्हें धारावी के बाहर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर दिया जाएगा.
  • सभी ऊपरी मंज़िलों में रहने वाले लोगों और साल 2011 से 15 नवंबर 2022 के दौरान धारावी में ग्राउंड फ़्लोर पर रहने वाले  लोगों को धारावी में घर नहीं मिलेगा.
  • हालाँकि, उन्हें मुंबई के किसी और हिस्से में किराये पर बसाने की बात हो रही है. वे चाहें तो बाद में इसे ख़रीद भी सकते हैं. इस काम के लिए मुंबई के अलग-अलग हिस्सों में ज़मीन ली जा रही है.

    image BBC झुग्गियों का पुनर्विकास कैसे होता है image BBC मुंबई की बनावट में पक्के घर की माँग हमेशा बनी रहती है

    हालाँकि, मुंबई में पुनर्वास का काम 'स्लम रिहेबिलिटेशन अथॉरिटी' (एसआरए) के ज़रिए होता रहा है. इसके तहत मकान पाने वाले पात्र व्यक्ति को एक जनवरी 2000 से पहले उस झोपड़पट्टी में रहना ज़रूरी है जिसका पुनर्विकास हो रहा है.

    कुछ मामलों में साल 2000 से 2011 के बीच रहने वाले व्यक्तियों को वैकल्पिक पुनर्वास, जैसे- किराए का घर दिया जा सकता है. इस काम के लिए मुंबई के अलग-अलग जगहों पर मौजूद ज़मीन के कई टुकड़ों के इस्तेमाल करने की बात हो रही है.

    इनमें से एक पूर्वी मुंबई का देवनार इलाक़ा है. यह कूड़े का डंपिंग ग्राउंड है यानी यहाँ अलग-अलग इलाक़ों से इकट्ठा कूड़ा जमा होता है. यहाँ कूड़ा ही कूड़ा है. धारावी के लोगों की चिंता है कि यहाँ हम कैसे रहेंगे.

    वैसे भी, भारतीय पर्यावरण नियमों के तहत आमतौर पर किसी डंपिंग ग्राउंड के 500 मीटर के दायरे में आवासीय विकास की इजाज़त नहीं होती.

    'स्लम रिहेबिलिटेशन स्कीम' (एसआरए) का मक़सद झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए सुविधाएँ मुहैया कराना है.

    image BBC स्थानीय निवासी रमाकांत को इस प्रोजेक्ट से काफ़ी उम्मीदें हैं

    इस योजना के तहत झुग्गियों में रहने वालों का नई बिल्डिंगों में पुनर्वास किया जाता है. जिस ज़मीन पर झुग्गियाँ होती हैं, वहाँ पहले विकास किया जाता है. वहाँ रहने वालों को अस्थाई तौर पर कहीं और रखा जाता है.

    जब उस जगह बिल्डिंग बन जाती है तो पात्र लोगों को वहाँ नया घर मिलता है. बिल्डर को वहीं पर कुछ जगहों के व्यावसायिक इस्तेमाल की छूट होती है. यह काम पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत होता है.

    एसआरए के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर प्रभु एक आर्किटेक्ट हैं. उनका मानना है कि झुग्गियों के पुनर्विकास की योजनाओं में शुरू से ख़ामियाँ रही हैं. वे कहते हैं, "70 लाख लोग झुग्गियों में रहते हैं. 

    मुंबई की बनावट ऐसी है कि पक्के घर की माँग हमेशा बनी रहती है. झुग्गी में रहने वालों ने कभी मुफ़्त में घर नहीं माँगा. उनकी माँग एक ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर की है जो ये सुनिश्चित करे कि उन्हें अपने घरों से निकाला नहीं जाएगा.

    ऐसी योजनाएँ सिर्फ़ उनके फ़ायदे के लिए हैं, जिन्हें पता है कि मुंबई की 10% प्राइम ज़मीन पर झुग्गियाँ हैं. किसी अन्य पुनर्वास योजना या धारावी जैसे प्रोजेक्ट में इकलौता मक़सद यही होता है कि ग़रीबों को वहाँ से हटाया जाए. अमीरों के लिए गेटबंद रिहायशी कॉलोनियाँ बना दी जाएँ."

    धारावी क्या है और यहाँ रहने वाले लोग कौन हैं? image BBC धारावी क़रीब 600 एकड़ में फैली है

    क़रीब छह सौ एकड़ में फैला धारावी मुंबई के सात रेलवे स्टेशनों को जोड़ता है. ये इलाक़ा बांद्रा-कुरला कॉम्प्लेक्स से सटा हुआ है. यहाँ देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट संस्थानों के दफ़्तर हैं.

    आज जहाँ धारावी में प्रवासी कामकाजी वर्ग रहता है, वहाँ पहले शहर के मछुआरे रहते थे.

    प्रशासन अब धारावी को एक वैश्विक स्तर के शहर में तब्दील करना चाहता है. मगर यहाँ रह रहे लोगों के लिए ये कई तरह के छोटे-बड़े उद्योगों का गढ़ है. साथ ही, यहाँ की विविधता भी अनोखी है.

    धारावी में हर साल पॉटरी, चमड़ा, प्लास्टिक जैसे छोटे उद्योगों से लगभग एक अरब डॉलर की आमदनी होती है. इससे क़रीब एक लाख लोगों को रोज़गार मिलता है.

    धारावी की अनोखी बनावट भी यहाँ अलग-अलग व्यापार चलाने में मदद करती है. लिहाज़ा, पुनर्विकास के दौरान यहाँ की जनता और उनके व्यापार के पुनर्वास को एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.

    क़रीब 12 एकड़ में फैले कुम्भारवाड़ा में धारावी के सबसे पुराने वासी- कुम्हार रहते हैं. कुम्हार समुदाय के कई लोग  घरों की निशानदेही करने वाले सर्वेक्षण का विरोध कर रहे हैं.

    image BBC दीपक को डर है कि कहीं और शिफ़्ट किए जाने से उनके कारोबार पर असर पड़ सकता है

    यहाँ रहने वाले दीपक कहते हैं, "मेरा परिवार कई पीढ़ियों से यह काम कर रहा है. हम मिट्टी लाते हैं. यहाँ उससे बर्तन बनाते हैं. उसे मेन रोड पर जा कर बेचते हैं. मेरी माँ, मेरे बच्चे यहीं हैं. हम एक यूनिट की तरह काम करते हैं."

    मिट्टी से बने सामानों को दिखाते हुए दीपक कहते हैं, "हमने इतनी छोटी सी जगह में अपना अनोखा सेटअप बनाया है. अगर यहाँ टाउनशिप बन जाएगी तो हम कैसे और कहाँ काम करेंगे, हमें इसका अंदाज़ा नहीं है."

    "अगर हमें किसी और जगह भेज दिया जाएगा तो हमारा प्रोडक्शन रुक जाएगा. व्यापार पर असर पड़ेगा. हम पूरा काम दोबारा शुरू नहीं कर सकते हैं."

    सिर्फ़ कुम्हार ही नहीं, धारावी की इन सँकरी गलियों में झाड़ू बनाने वालों से लेकर टूर गाइड और होम-बेस्ड वर्कर तक रहते और काम करते हैं. यहाँ का चमड़ा उद्योग काफ़ी बड़ा है. इसमें हर धर्म के लोग काम करते हैं.

    image Getty Images धारावी एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती है (फ़ाइल फ़ोटो)

    धारावी का चमड़ा उद्योग दुनिया भर में अपने लेदर के उत्पाद भेजता है. जानवर की खाल साफ़ करने से लेकर उससे अलग-अलग चीज़ें बनाने तक का काम यहीं पर होता है. पुनर्विकास की परियोजना से चमड़ा व्यापारी भी चिंतित हैं.

    चमड़ा उद्योग का गढ़ बन चुकी इन गलियों में इमरान की दुकान है. यहाँ से लोग लेदर प्रोडक्ट ख़रीदते हैं. इमरान की दुकान पर पूरी दुनिया से ख़रीददार आते हैं.

    इमरान ने बीबीसी को बताया, "धारावी स्मॉल-स्केल इंडस्ट्री का हब है. मसलन, लेदर इंडस्ट्री को ही देख लीजिए. यहाँ सबका काम ऐसे बँटा है, जैसे एक शरीर में होता है. अलग-अलग लोग इस उद्योग के हाथ-पैर, दिल और दिमाग़ हैं."

    "अगर इसे अलग कर दिया जाएगा तो भविष्य में ये शरीर दम तोड़ देगा. इसी तरह से हमें साथ रह कर काम करना होगा वरना लोगों का व्यापार ख़त्म हो जाएगा. लोग बेरोज़गार हो जाएँगे और धारावी पर इसका गहरा असर पड़ेगा."

    पुनर्विकास की योग्यता: लोगों का क्या कहना है? image BBC चंद्रशेखर पटवा कहते हैं कि धारावी सोने की चिड़िया है

    चंद्रशेखर पटवा राखी बनाने का काम करते हैं. उनका सप्लाई चेन पूरे धारावी में फैला हुआ है. चंद्रशेखर मूलतः उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से हैं. 

    वे कई साल पहले धारावी आए थे. राखी बनाने के इस काम में बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल हैं. वे घरों में रह कर काम करती हैं. राखी बनाने का काम साल भर चलता है. चंद्रशेखर पटवा भी पुनर्विकास के मुद्दे पर चिंतित हैं.

    वे कहते हैं, "धारावी सोने की चिड़िया है. हमने इसे बहुत मेहनत से बनाया है. हमने ख़ाली पेट सोकर रातें बिताई हैं, तब हम यहाँ तक पहुँचे हैं. हमारी कई पीढ़ियों ने अलग-अलग काम किए हैं. अगर कोई पुनर्विकास के नाम पर ये सब छीन लेगा तो हमारे साथ अच्छा नहीं होगा."

    धारावी के बारे में बताते हुए डॉक्टर जावेद ख़ान कहते हैं, "धारावी इतिहास के अहम मोड़ पर खड़ा है. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि धारावी एक मिनी-इंडिया की तरह है. लाखों लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से रोज़ी-रोटी कमाने के लिए मुंबई आते हैं.''

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    "आज से पहले भी धारावी के पुनर्विकास की कोशिशें हुई हैं, मगर किसी भी बिल्डर ने यहाँ के लोगों को विस्थापित करने या उन्हें अयोग्य घोषित करने की बात नहीं की है."

    "इस प्रोजेक्ट के ज़रिये लोगों को घर तो मिल जाएगा मगर उनकी रोज़ी-रोटी छिन जाएगी. उनके बच्चों की पढ़ाई ख़राब हो जाएगी. यहाँ का जो सामाजिक ताना-बाना है, वह ख़राब हो जाएगा."

    डॉक्टर जावेद का कहना है कि अगर लोगों को देवनार कूड़ा डंपिंग ग्राउंड के पास बसाया गया तो इससे कई बीमारियों का ख़तरा भी हो सकता है. यहाँ का पानी भी अच्छा नहीं होगा. टीबी जैसी बीमारियाँ भी हो सकती हैं.

    पुनर्विकास प्रोजेक्ट के तहत धारावी में एक सर्वेक्षण भी चल रहा है. इस सर्वेक्षण के तहत लोगों से प्रोजेक्ट के लिए रज़ामंदी ली जा रही है. जो लोग इस सर्वेक्षण में शामिल नहीं होंगे.

    उन्हें प्रोजेक्ट के तहत नया आवास नहीं दिया जाएगा. इस सर्वेक्षण के बीच, धारावी के मौजूदा निवासियों को 'अयोग्य' घोषित हो जाने का डर भी सता रहा है.

    image BBC सलमा को डर है कि इस योजना की वजह से वो बेघर हो सकती हैं

    सलमा होम-बेस्ड वर्कर हैं.  उनका परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से धारावी में रह रहा है. उन्हें डर है कि वे बेघर हो सकती हैं.

    सलमा कहती हैं, "हमें सरकार या डीआरपीएल (धारावी रीडेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड) की तरफ़ से किसी बात की पुख़्ता जानकारी नहीं मिल रही है. वे हमें घर देंगे या नहीं या किस आधार पर हमें योग्य या अयोग्य माना जाएगा, पता नहीं.''

    सलमा कहती हैं, "उनका (सरकार का) कहना है कि वे ये सब विकास के लिए कर रहे हैं. मगर विकास तो सबका बराबर होना चाहिए. हमें लग रहा है कि हम बराबर नहीं हैं. "

    "हमारे साथ कीड़ों जैसा व्यवहार किया जा रहा है. जैसे हम सड़क पर रेंग रहे हैं और सरकार हमें कुचल रही है. हम सर्वे के ख़िलाफ़ नहीं हैं, मगर हमें घर के बदले घर चाहिए."

    धारावी में हर धर्म और समुदाय के लोग इसी तरह की चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं.

    धारावी बचाओ आंदोलन (डीबीए) नाम का संगठन शुरू से इस प्रोजेक्ट में योग्यता और पुनर्वास के मानकों का विरोध कर रहा है.

    डीबीए के राजू कोरडे कहते हैं, "इस प्रोजेक्ट में साल 2009 में योग्यता की कोई कैटेगरी नहीं थी. जनता को रियायत थी कि सबका पुनर्वास होगा, जो नहीं हो रहा है. हमारी यही माँग है कि 'कटऑफ डेट' हटाया जाए. सबको घर दिया जाए."

    कपड़ा सिलने का काम करने वालीं साबिया मानती हैं कि ये प्रोजेक्ट एक बेहतर भविष्य की ओर पहला क़दम है. हालाँकि, वह परेशान भी हैं.

    वह कहती हैं, "हमने सब कुछ बेच कर यहाँ अपना घर बनाया था. हमारे पास सारे कागज़ हैं लेकिन अब वे साल 2000 से पहले का वोटर आईडी कार्ड भी माँग रहे हैं. यह हमारे पास नहीं है.''

    "हमने ये घर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए बनाया है. मैं दिन-रात काम करती हूँ ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके. अगर हमारा काम और घर छिन गया तो सब ख़त्म हो जाएगा."

    क्या कहते हैं प्रोजेक्ट के सीईओ image BBC धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के सीईओ एसवीआर श्रीनिवास के मुताबिक़ यह योजना गेमचेंजर होगी

    बीबीसी हिंदी ने योग्यता के मापदंडों पर धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के सीईओ एसवीआर श्रीनिवास से बात की.

    उन्होंने कहा, "ये दुनिया का सबसे बड़ा शहरी नवीनीकरण प्रोजेक्ट है. हमारी योजना एक गेमचेंजर है. धारावी की गलियाँ इतनी सँकरी हैं कि यहाँ टॉयलेट, पानी... कुछ नहीं था. हम सबको घर देने के सिद्धांत के साथ काम कर रहे हैं, चाहे वे योग्य हों या अयोग्य."

    वे कहते हैं, "हम कई लोगों को किराए के घरों की सुविधा भी दे रहे हैं. उन लोगों के पास सरकार की तरफ़ से तय की गई क़ीमत पर इन घरों को ख़रीदने का मौक़ा भी होगा."

    विवादों से घिरा रहा है धारावी पुनर्विकास का प्रोजेक्ट

    साल 2004 में सबसे पहले इस प्रोजेक्ट पर चर्चा शुरू हुई थी. तब से ही ये परियोजना विवादों में घिरी रही है.

    क़रीब दो दशकों तक बोली लगाने वाली (बिडर्स) कई कंपनियाँ आईं मगर बात नहीं बनी. आख़िरकार नवंबर 2022 में अदानी ग्रुप ने बिड जीती.

    image BBC धारावी में रहने वाले कई लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद है

    हालाँकि, साल 2019 में दुबई स्थित 'सेक्लिंक टेक्नोलॉजीज़ कारपोरेशन' ने अदानी के ख़िलाफ़ बिड जीत ली थी. मगर तकनीकी आधार पर उसे टेंडर नहीं मिला.

    हुआ यह था कि कंपनी ने अपने टेंडर में रेलवे की 47.5 एकड़ भूमि को शामिल नहीं किया था. यह मुद्दा विवाद का विषय बना और अदालत में भी गया था. हालाँकि बाद में यह मामला अदानी समूह के पक्ष में गया.

    दूसरी ओर, विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इस प्रोजेक्ट से मुंबई के लोगों को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के नज़दीकी माने जाने वाले गौतम अदानी को फ़ायदा पहुँचेगा.

    वहीं, मुंबई भारतीय जनता पार्टी के  अध्यक्ष आशीष शेलार ने कहा है कि यह परियोजना एक आवश्यकता है  और प्राथमिकता की परियोजना है.  जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे 'अर्बन नक्सल' हैं. पिछले दिनों मुंबई दौर पर आए कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी धारावी के चमड़ा उद्योग से जुड़े लोगों से मिले थे.

    जहाँ एक ओर इस मुद्दे पर लगातार विवाद होता रहा है, वहीं धारावी के पुनर्विकास प्रोजेक्ट से कई लोगों को उम्मीदें भी हैं. यहाँ के लोग भी वैसी बेहतर ज़िंदगी जीना चाहते हैं, जैसा मुंबई के अलग-अलग हिस्सों में लोग जीते हैं.

    एक बेहतर भविष्य की उम्मीद image BBC पूजा कहती हैं कि उन्हें ऐसी जगह चाहिए जहां रील्स बनाई जा सकें

    पूजा युवा हैं और योग सिखाती हैं. वह कहती हैं, "जब मैं ऑफिस जाती हूँ तो उन लोगों को देखती हूँ जो बाक़ी अच्छे इलाक़ों से आते हैं."

    "उनकी कॉलोनियाँ काफ़ी विकसित हैं. उनका रहन-सहन अच्छा है. यहाँ लोग तो विकसित हैं पर यहाँ कोई प्राइवेसी नहीं है. हमें एक चमकता धारावी चाहिए. हमें ऐसी जगहें भी चाहिए, जहाँ हम रील्स शूट कर सकें.''

    उम्मीद का ये सकारात्मक भाव उन लोगों के मन में ख़ासतौर पर है जिन्होंने धारावी में अपना जीवन बिताया है.

    इन्हीं गलियों में बड़े हुए रमाकांत को भी इस प्रोजेक्ट से उम्मीदें हैं.

    वह कहते हैं, "मेरी गली में जितने बड़े घर हैं, उससे बड़े तो घोड़ों या भैंसों को बाँधने की जगह होती है. इस प्रोजेक्ट से मुझे अपेक्षा है कि चीज़ें बदलेंगी. इसके बाद धारावी भी बदलेगा."

    "आज के बच्चे-बच्चियाँ वे सपने पूरे कर पाएँगे जो हम नहीं कर पाए."

    बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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