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क्या ट्रंप दुनिया भर में दबदबा क़ायम करने के लिए ट्रेड को कर रहे हैं इस्तेमाल?

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Getty Images डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई को दावा किया था कि, 'अमेरिकी मध्यस्थता की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम हुआ'

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम का श्रेय लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने दोनों देशों को जंग से रोका.

ट्रंप ने सोमवार कोदावा किया कि, 'अमेरिका की ओर से व्यापार का हवाला देने के बाद दोनों देश संघर्षविराम के लिए तैयार हुए'

ट्रंप ने , "हमने बहुत मदद की. हमने ट्रेड से मदद की. हमने कहा कि हम आपके साथ बहुत सारा ट्रेड करते हैं, इसे बंद करें. अगर आप रुकेंगे तो हम ट्रेड करेंगे, अगर नहीं रुकेंगे तो हम ट्रेड नहीं करेंगे."

भारत, सीज़फ़ायर में ट्रेड की भूमिका से इनकार कर चुका है

ट्रंप के इन दावों के बाद पीएम मोदी ने भी देश को संबोधित किया, हालांकि उन्होंने ट्रंप के इन दावों पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन बाद में मंगलवार को विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के दावों पर टिप्पणी ज़रूर की.

ट्रंप के दावों पर ने एक्स पर लिखा, "प्रधानमंत्री का लंबे समय से टलता आ रहा राष्ट्र के नाम संबोधन राष्ट्रपति ट्रंप के कुछ मिनट पहले किए गए खुलासों से पूरी तरह दब गया. प्रधानमंत्री ने उन पर एक शब्द भी नहीं कहा."

image FAYEZ NURELDINE/AFP via Getty Images ट्रंप ने सऊदी अरब के दौरे पर मंगलवार को भी अपनी बातों को दोहराया कि उन्होंने 'भारत और पाकिस्तान से युद्ध के बदले व्यापार की बात की'

मंगलवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने मध्य-पूर्व के अपने दौरे पर सऊदी अरब में भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम पर अपने दावे को फिर दोहराया.

, "मैंने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने उद्घाटन भाषण में कहा था कि मैं शांति स्थापित करने वाला बनना चाहता हूं. मुझे युद्ध पसंद नहीं है. हालांकि हमारे पास दुनिया के इतिहास की सबसे बड़ी फौज है. कुछ ही दिन पहले मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए सफलतापूर्वक ऐतिहासिक सीज़फ़ायर करवाया. मैंने इसके लिए काफी हद तक व्यापार का इस्तेमाल किया. मैंने कहा कि चलो एक सौदा करते हैं, कुछ व्यापार करते हैं."

उनके इस भाषण का लोगों ने तालियों से स्वागत भी किया.

हालांकि इससे पहले भी ट्रंप ने चीन, यूक्रेन, कनाडा और मेक्सिको जैसे कई देशों के साथ अमेरिका के संबंधों को व्यापार और अपनी आर्थिक ताक़त के दम पर नियंत्रित करने की कोशिश की है.

विदेश मामले के जानकारों का कहना है कि ट्रंप दुनियाभर में अमेरिकी वर्चस्व को बनाए रखने में ट्रेड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.

अमेरिका की 'तीन' ताक़त image Reuters / Getty Images ईरान के परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं

अर्थशास्त्री और द इंस्टीट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व प्रेसीडेंट वेद जैन कहते हैं, "अमेरिका अपनी इसी ताक़त की वजह से दुनिया पर अपना दबाव बना लेता है कि मैं आपका माल ख़रीदता हूं. हमारी बात नहीं मानी तो हम आपसे माल नहीं ख़रीदेंगे. इस समय दुनिया की अर्थव्यवस्था 110 ट्रिलियन डॉलर की है, जिसमें अमेरिका 27 ट्रिलियन डॉलर और चीन 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है."

वेद जैन के मुताबिक़, अमेरिका और चीन के बीच बुनियादी अंतर यह है कि अमेरिका दूसरे देशों से सामान आयात करता है यानी ख़रीदता है, जबकि चीन दूसरों को निर्यात करता है.

वेद जैन कहते हैं, "अमेरिका के पास तीन तरह की ताक़त है, पहला उसकी क्रय शक्ति (पर्चेज़िंग पावर), दूसरा अमीर देश होने के नाते दूसरों की मदद करने की क्षमता (जैसी उसने 1960 के आसपास पीएल-480 गेहूं भेजकर भारत की मदद की थी) और तीसरी उसकी सैन्य शक्ति."

उनका मानना है कि अमेरिका इन्हीं ताक़त की बदौलत दुनिया पर अपना दबाव बनाता है, जैसे उसने दुनिया भर के देशों से कहा कि वो ईरान से तेल न ख़रीदें और रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद दबाव बनाया कि कोई देश रूस से तेल न ख़रीदे.

हालांकि दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने अमेरिका की नीतियों में बड़ा बदलाव किया है. ख़ासकर दूसरे देशों को मदद देने के मामले में उसकी नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है.

ट्रंप ने सरकारी खर्च में कटौती के लिए एक नया विभाग भी बनाया है और इसकी ज़िम्मेदारी अरबपति कारोबारी एलन मस्क को सौंपी है.

ट्रंप ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में भी यूक्रेन को मिलने वाली अमेरिकी मदद को रोक देने की चेतावनी दी और रूस के साथ युद्धविराम के लिए दबाव बनाया.

अमेरिका ने कई मौक़ों पर अन्य देशों के साथ अपने व्यापार को भी अमेरिकी हितों के लिए एक ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया है और दबाव बनाने की कोशिश की है.

image BBC बड़ा उपभोक्ता बाज़ार image Getty Images अमेरिका दुनिया का एक बड़ा उपभोक्ता देश है (सांकेतिक तस्वीर)

अमेरिका दुनिया में न केवल एक आर्थिक ताक़त है बल्कि वह हथियारों का सबसे बड़ा उत्पादक है. इसके अलावा डिजिटल क्रांति के मामले में भी वह दुनिया में सबसे आगे है.

अमेरिका की डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल दुनिया के ज़्यादातर देश करते हैं, इनमें सोशल मीडिया से लेकर, सर्च इंजन और इंटरनेट के ज़रिए अन्य प्लेटफ़ॉर्मों का इस्तेमाल शामिल है.

विदेश व्यापार मामलों के विश्लेषक अजय श्रीवास्तव भारत सरकार के विदेश व्यापार महानिदेशालय में एडिशनल डायरेक्टर जनरल फ़ॉरेन ट्रेड के पद पर रह चुके हैं.

उनका कहना है, "अमेरिका दुनिया में अलग-अलग चीज़ों का 20% प्रोडक्शन करता है जबकि इस्तेमाल 40% उत्पाद का करता है. इस लिहाज से दुनिया के ज़्यादातर देशों को अमेरिका के साथ व्यापार में फ़ायदा होता है. वह दुनिया का डिजिटल पावर भी है और उसके पास डॉलर की दादागिरी है."

अजय श्रीवास्ताव कहते हैं, "अमेरिका को किसी से डॉलर ख़रीदना नहीं है, उसे बस छापना है. उसकी बात नहीं मानने पर वह 'स्विफ्ट' तक पहुंच बंद करा देगा, जैसा उसने रूस और ईरान के साथ किया."

स्विफ्ट यानी 'सोसायटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्यूनिकेशन' एक सुरक्षित मैसेजिंग सिस्टम है जिसके ज़रिए देशों के बीच तेज़ी के साथ पेमेंट (भुगतान) संभव हो पाता है.

अंतरराष्ट्रीय कारोबार में इससे काफ़ी मदद मिलती है.

अजय श्रीवास्तव मानते हैं कि भारत भी अमेरिका के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है जिसकी चर्चा आमतौर पर कम होती है.

वो हर साल भारतीय छात्रों, बैंक और इंटरनेट तकनीक के इस्तेमाल के तौर पर अमेरिका को मिलने वाले अरबों डॉलर के फ़ायदे को गिनाते हैं.

भारत का रुख़ image BBC

ट्रंप के दावे और डॉलर डिप्लोमेसी को भारत सरकार की तरफ़ से मंगलवार को बयान आया है. भारत ने माना है कि पाकिस्तान से मौजूदा संघर्ष के दौरान अमेरिका के नेताओं से बातचीत हुई थी.

मंगलवार को वीकली मीडिया ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "7 मई से 10 मई तक भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच बातचीत हुई थी, लेकिन ट्रेड को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई."

ग़ौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक चले संघर्ष के बाद शनिवार यानी 10 मई को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि, 'अमेरिका की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान संघर्षविराम के लिए तैयार हो गए.'

कुछ देर बाद पाकिस्तान ने भी 'सीज़फ़ायर' की बात कही और अमेरिका का शुक्रिया अदा किया.

जायसवाल ने ट्रंप के इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहा, "अमेरिका के साथ पाकिस्तान सैन्य संघर्ष को विराम देने या मध्यस्थता को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई."

image AFP भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कृषि व्यापार 800 करोड़ रुपए का है

दक्षिणपंथी आर्थिक विश्लेषक डॉक्टर सुव्रोकमल दत्ता का मानना है कि ट्रंप ने जो कहा उसे भारत सरकार ने स्वीकार नहीं किया है, इसलिए ट्रंप के बयान को उनका निजी बयान माना जाना चाहिए.

उनका कहना है, "अमेरिका पाकिस्तान के साथ क्या करता है, इससे भारत का कोई लेना-देना नहीं है. जहां तक भारत का सवाल है तो वो ट्रेड की धमकी देकर अपनी बात मनवाना चाहता है, जबकि भारत को उसकी कोई ज़रूरत नहीं है."

सुव्रोकमल दत्ता कहते हैं, "अमेरिका पहले ही चीन के साथ ट्रेड वॉर में उलझा हुआ है और अगर वो भारत के ख़िलाफ़ कोई मोर्चा खोलता है तो इससे भारत को नहीं बल्कि अमेरिका को नुक़सान होगा."

भारत-अमेरिका व्यापार image BBC

भारत और अमेरिका के बीच मौजूदा ट्रेड की बात करें तो पिछले वित्तीय वर्ष यानी साल 2024-25 में भारत ने अमेरिका को 86.5 अरब डॉलर का निर्यात किया है, जबकि अमेरिका से भारत ने 45.3 अरब डॉलर का आयात किया है.

इस लिहाज से भारत-अमेरिका ट्रेड बैलेंस भारत के पक्ष में है.

भारत और पाकिस्तान या अन्य देशों पर ट्रंप के दबाव की राजनीति की कोशिश के बारे में फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन के अध्यक्ष एससी रल्हन कहते हैं, "जो सबसे ताक़तवर होता है, उसकी आदत दूसरों पर रोब डालने की हो जाती है."

रल्हन कहते हैं, "अमेरिका व्यापार के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण देश है क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार में भारत को ज़्यादा फ़ायदा है. इसलिए अमेरिका ज़्यादा शोर मचाता है."

हालांकि एससी रल्हन का मानना है कि व्यापार के लिए भारत के सामने अफ़्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिणी अफ़्रीकी देश विकल्प के तौर पर मौजूद हैं.

डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल के अंत में दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद ब्रिक्स देशों को डॉलर का विकल्प तलाशने के बारे में कड़ी चेतावनी दी थी और अमेरिका की आर्थिक ताक़त को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की मंशा साफ़ तौर पर ज़ाहिर कर दी थी.

ट्रंप ने डॉलर का विकल्प तलाशने की कोशिश कर रहे (आयात शुल्क) लगाने की धमकी दी थी.

ब्रिक्स में दुनिया की दो सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं चीन और भारत भी शामिल हैं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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