अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण भारत ने अब रूस के कच्चे तेल पर कम निर्भर रहना शुरू तो कर दिया है, लेकिन अब अमेरीका नई दिल्ली पर एक और दबाव बना रहा है, इस बार भारत के एनर्जी मार्केट को खोलने का। संभावित व्यापार समझौते (trade deal) के लिए अमेरिका चाहता है कि भारत अपने टैरिफ घटाए और अमेरिकी फ्यूल कंपनियों के लिए मार्केट खोले। हालांकि कुछ छूटें संभव हैं, पर असली टकराव बायोफ्यूल एरिया में दिख रहा है।
LPG और एथेन में बढ़ेगा अमेरिकी प्रभाव
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत की सरकारी तेल कंपनियां अमेरिकी लिक्विफ़ाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) की खरीद बढ़ाने की योजना बना रही हैं। इससे मिडिल ईस्ट के सप्लायर्स पर असर पड़ेगा। भारत अमेरिकी LPG पर इम्पोर्ट ड्यूटी खत्म करने पर भी विचार कर रहा है। उधर, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज अमेरिकी एथेन इम्पोर्ट कर प्लास्टिक और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्शन बढ़ा सकती है।
बायोफ्यूल बाजार पर अमेरिका की नजर
भारत हर साल करीब 10 अरब लीटर एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाता है, जिससे देश की एनर्जी की जरूरतें पूरी होती हैं और किसानों को इनकम भी मिलती है। लेकिन अमेरिका नाराज है कि भारत ईंधन उपयोग के लिए एथेनॉल इम्पोर्ट की अनुमति नहीं देता। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत का यह प्रतिबंध अमेरिकी कॉर्न-बेस्ड एथेनॉल एक्सपोर्टर्स के लिए बड़ी बाधा है। जैसे-जैसे भारत में व्हीकल ओनरशिप बढ़ेगा, एथेनॉल की मांग 2050 तक दोगुनी भी हो सकती है।
किसानों का विरोध बन सकता है बाधा
भारत का बायोफ्यूल प्रोग्राम केवल एनर्जी इंडिपेंडेंस नहीं बल्कि किसानों के लिए एडिशनल इनकम का साधन भी है। अब तक किसानों ने 1.18 ट्रिलियन रुपये (₹13.4 billion) की कमाई गन्ने के रस, शीरे (molasses), मक्का और धान के पुआल जैसी फसलों से की है। अगर अमेरिकी एथेनॉल को भारत में जगह मिली, तो स्थानीय डिस्टिलरी और किसान दोनों को नुकसान हो सकता है। इससे ग्रामीण इलाकों में असंतोष बढ़ सकता है।
PM मोदी के लिए राजनीतिक जोखिम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 11 वर्षों से देश की राजनीति में मजबूत स्थिति में हैं। लेकिन किसानों के विरोध ने पहले भी उनकी नीतियों को पीछे हटने पर मजबूर किया है। अब जब उत्तर भारत के कृषि प्रधान राज्यों में 2027 तक चुनाव होने हैं, मोदी किसी ऐसे व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से बचेंगे जो किसानों को फिर से सड़कों पर ले आए। ट्रम्प प्रशासन भले ही ट्रेड वार में बढ़त लेने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन भारत के लिए यह समझौता आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चुनौती साबित हो सकता है।
LPG और एथेन में बढ़ेगा अमेरिकी प्रभाव
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत की सरकारी तेल कंपनियां अमेरिकी लिक्विफ़ाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) की खरीद बढ़ाने की योजना बना रही हैं। इससे मिडिल ईस्ट के सप्लायर्स पर असर पड़ेगा। भारत अमेरिकी LPG पर इम्पोर्ट ड्यूटी खत्म करने पर भी विचार कर रहा है। उधर, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज अमेरिकी एथेन इम्पोर्ट कर प्लास्टिक और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्शन बढ़ा सकती है।
बायोफ्यूल बाजार पर अमेरिका की नजर
भारत हर साल करीब 10 अरब लीटर एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाता है, जिससे देश की एनर्जी की जरूरतें पूरी होती हैं और किसानों को इनकम भी मिलती है। लेकिन अमेरिका नाराज है कि भारत ईंधन उपयोग के लिए एथेनॉल इम्पोर्ट की अनुमति नहीं देता। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत का यह प्रतिबंध अमेरिकी कॉर्न-बेस्ड एथेनॉल एक्सपोर्टर्स के लिए बड़ी बाधा है। जैसे-जैसे भारत में व्हीकल ओनरशिप बढ़ेगा, एथेनॉल की मांग 2050 तक दोगुनी भी हो सकती है।
किसानों का विरोध बन सकता है बाधा
भारत का बायोफ्यूल प्रोग्राम केवल एनर्जी इंडिपेंडेंस नहीं बल्कि किसानों के लिए एडिशनल इनकम का साधन भी है। अब तक किसानों ने 1.18 ट्रिलियन रुपये (₹13.4 billion) की कमाई गन्ने के रस, शीरे (molasses), मक्का और धान के पुआल जैसी फसलों से की है। अगर अमेरिकी एथेनॉल को भारत में जगह मिली, तो स्थानीय डिस्टिलरी और किसान दोनों को नुकसान हो सकता है। इससे ग्रामीण इलाकों में असंतोष बढ़ सकता है।
PM मोदी के लिए राजनीतिक जोखिम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 11 वर्षों से देश की राजनीति में मजबूत स्थिति में हैं। लेकिन किसानों के विरोध ने पहले भी उनकी नीतियों को पीछे हटने पर मजबूर किया है। अब जब उत्तर भारत के कृषि प्रधान राज्यों में 2027 तक चुनाव होने हैं, मोदी किसी ऐसे व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से बचेंगे जो किसानों को फिर से सड़कों पर ले आए। ट्रम्प प्रशासन भले ही ट्रेड वार में बढ़त लेने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन भारत के लिए यह समझौता आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक चुनौती साबित हो सकता है।
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