पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने चरम पर है। इस बार भी चुनाव में बाहुबलियों की चर्चा जोरों पर है। कुछ बाहुबली खुद चुनावी मैदान में हैं, जबकि अन्य अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव में उतारकर अपनी राजनीतिक ताकत को प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहे हैं। आइए, हम आपको 2000 के चुनावों की ओर ले चलते हैं, जब बाहुबलियों के लिए यह चुनाव सबसे लाभकारी साबित हुआ था।
2000 का चुनाव और बाहुबलियों की जीत
साल 2000 में, जब झारखंड बिहार का हिस्सा था, उस समय के विधानसभा चुनाव में कई बाहुबलियों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। उस वर्ष 20 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया। हालांकि, 2020 में यह संख्या घटकर केवल एक पर आ गई, जब चकाई विधानसभा सीट से सुमित सिंह ही निर्दलीय के रूप में जीत पाए। अब 2025 में, सुमित सिंह जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
2020 के चुनाव में निर्दलीय विधायकों की सूची
2020 के चुनाव में जिन निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, उनमें शामिल हैं: आदापुर से वीरेंद्र प्रसाद, गोबिंदगंज से राजन तिवारी, मांझी से रवींद्र नाथ मिश्रा, और अन्य। इनमें से कई बाहुबली जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत गए थे। उस समय बिहार विधानसभा में कुल 324 विधायक थे।
नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री बनना
उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली NDA सरकार थी। नीतीश कुमार, जो समता पार्टी के नेता थे, को 3 मार्च 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। बिहार बीजेपी के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र ने नीतीश कुमार को बहुमत साबित करने में मदद की। उन्होंने चुनाव जीतने वाले निर्दलीय विधायकों से संपर्क किया और 15 विधायकों को नीतीश कुमार का समर्थन देने के लिए राजी किया।
बाहुबलियों का समर्थन
नीतीश कुमार जब विधानसभा पहुंचे, तो वहां कई बाहुबलियों ने उनका समर्थन किया। हालांकि, कुछ बाहुबलियों ने कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के विधायकों को रोकने का प्रयास किया। अंततः नीतीश कुमार ने बहुमत परीक्षण से पहले ही सरकार चलाने से मना कर दिया।
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