एक बार एक बहुत शक्तिशाली सम्राट हुआ। उसकी बेटी इतनी सुंदर थी कि देवता तक सोचते थे—अगर उससे विवाह हो जाए तो उनका जीवन धन्य हो जाएगा। उसकी सुंदरता की चर्चा पूरी त्रिलोकी में फैल गई थी। सम्राट भी यह जानते थे।
एक रात सम्राट पूरी रात अपने कक्ष में टहलते रहे। सुबह महारानी ने देखा और पूछा—“महाराज, आप पूरी रात जागे रहे, क्या कोई चिंता है?”
सम्राट बोले—“मुझे अपनी बेटी को लेकर चिंता है। लेकिन अब मैंने निर्णय कर लिया है। समरथ को नहीं दोष गुसाईं। मैं स्वयं अपनी बेटी से विवाह करूंगा।”
महारानी ने बहुत समझाया, लेकिन जब किसी की समझ पर पत्थर पड़ जाए तो कोई क्या कर सकता है।
अगले दिन राजसभा में सम्राट ने घोषणा कर दी—“मैं समर्थ पुरुष हूँ, और अपनी ही बेटी से विवाह करूंगा। समरथ को नहीं दोष गुसाईं।”
किसी में विरोध करने की ताकत नहीं थी। विवाह का मुहूर्त निकाला गया।
महारानी गुप्त रूप से एक महात्मा के पास पहुँची और रोते हुए सारी बात बताई।
महात्मा ने कहा—“चिंता मत कीजिए। विवाह से एक दिन पहले मैं आपके महल में भोजन के लिए आऊँगा।”
विवाह से एक दिन पहले महात्मा आए। उन्होंने तीन थालियाँ सजवाईं। एक थाली में ५६ भोग, दूसरी थाली में विष्टा (मल), और तीसरी उनके लिए रखी गई।
सम्राट को राजसभा से भोजन के लिए बुलाया गया।
महात्मा ने कहा—“राजन, मैंने सुना है आप समर्थ पुरुष हैं। मेरे कई जन्मों की तपस्या है कि मुझे एक समर्थ पुरुष के साथ भोजन करना है। कृपया इस थाली से भोजन करें।”
सम्राट के सामने ५६ भोग नहीं, बल्कि विष्टा वाली थाली रख दी गई।
सम्राट क्रोधित होकर बोले—“यह कैसे संभव है? मैं यह भोजन नहीं कर सकता।”
महात्मा ने कहा—“राजन, आप तो समर्थ पुरुष हैं। आपके लिए कोई दोष नहीं है।”
सम्राट असमंजस में थे। तब महात्मा ने योगबल से सुअर का रूप धारण किया और विष्टा खाकर पुनः अपने स्वरूप में आ गए।
यह देखकर सम्राट वहीं घुटनों के बल बैठ गए और उनकी आँखें खुल गईं।
इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि हर जीव में प्रोटीन है—गाय में भी, पेड़ में भी, मनुष्य में भी। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सब कुछ खाया जा सकता है।
माँ, बहन और पत्नी—तीनों ही स्त्रियाँ हैं, लेकिन हमारे दृष्टिकोण अलग-अलग होते हैं। उसी तरह गाय भी हमारे लिए केवल एक पशु नहीं, बल्कि “माता” है।
हिंदू परंपरा में गाय को माता मानने के गहरे और वैज्ञानिक कारण हैं।
हिंदू ही वह समुदाय है जिसने मन को खोजा, आत्मा-परमात्मा को खोजा और अदृश्य को शाश्वत बनाने का सामर्थ्य दिखाया।
इसीलिए जब हिंदू गाय को माता कहता है, तो वह केवल आस्था नहीं, बल्कि ठोस और गहन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहता है।
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