ये तो सब जानते है कि बाबा रामदेव हर साल अपने आयुर्वेदिक पतंजलि प्रोडक्ट्स से काफी अच्छी खासी कमाई करते है, लेकिन आखिर अपनी कमाई का क्या करते है बाबा रामदेव, इस बारे में बहुत से लोग नहीं जानते होंगे। इसलिए आज हम आपको बाबा रामदेव की कमाई के बारे में सब कुछ विस्तार से बताना चाहते है। सबसे पहले तो हम आपको ये बताना चाहते है कि वर्तमान समय में एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर जो विवाद चल रहा है, वह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा।
जी हां बाबा रामदेव ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि आज हजारों डॉक्टर तुलसी और गिलोय ले रहे है। इसके बाद उन्होंने बताया कि रुचि सोया और पतंजलि का टर्नओवर लगभग पच्चीस हजार करोड़ रुपए का है और उनकी जो भी कमाई होती है वो सौ फीसदी चैरिटी के लिए ही है। गौरतलब है कि 2016 में खत्म हुए वित्त वर्ष में कंपनी का राजस्व एक साल पहले की तुलना में 139 फीसदी बढ़ कर चार हजार आठ सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गया था, जब कि इसका मुनाफा एक सौ पचास फीसदी बढ़त के साथ 772 करोड़ रुपए तक रहा था।
वही 2017 में खत्म हुए वित्त वर्ष में कंपनी का राजस्व 86 फीसदी और मुनाफा 54 फीसदी बढ़ा था। बता दे कि बाबा रामदेव की कंपनी के बिस्किट, नूडल्स , डेयरी कारोबार, सोलर पैनल, अपैरल और ट्रांसपोर्टेशन आदि का कारोबार पतंजलि आयुर्वेद के अंतर्गत नहीं आता। जी हां इसके लिए उनकी एक अलग कंपनी है। हालांकि पिछले साल दिसंबर में पतंजलि ने दिवालिया हो चुकी कंपनी रुचि सोया को 4350 करोड़ रुपए में खरीदा था और रुचि सोया न्यूट्रीला ब्रांड से सोया फूड बनाती है।
रुचि सोया कंपनी को कैसे खरीदा था पतंजलि ने :यहां गौर करने वाली बात ये है कि कर्जे में डूबी हुई रुचि सोया कंपनी को खरीदने के लिए पतंजलि ने 3200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था और इस दौरान पतंजलि को 1200 करोड़ रुपए एसबीआई से, 400 करोड़ रुपए सिंडिकेट बैंक से, सात सौ करोड़ रुपए पंजाब नेशनल बैंक से, छह सौ करोड़ रूपए यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से तथा तीन सौ करोड़ रूपए इलाहाबाद बैंक से मिले थे। बता दे कि वित्त वर्ष 2019 और 2020 में रुचि सोया की तरफ से बताया गया था कि कंपनी का मैन्युफैक्चरिंग लोकेशन देश भर के बाइस हिस्सों में है। जिनमें चेन्नई, गुना, कोटा, हल्दिया, जम्मू, दुर्गावती, मंगलुरु, नागपुर, रुड़की, रानी पिपरा, श्री गंगानगर आदि जैसे प्रमुख शहर शामिल है।
बहरहाल भारत में ये कंपनी सोया उत्पादन के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है और इसके खुद के बहुत सारे प्रमुख ब्रांड है। जी हां इसमें न्यूट्रीला, महाकोश, रुचि गोल्ड, रुचि स्टार और सनरिच जैसे ब्रांड भी शामिल है। वही अगर हम रुचि सोया की कमाई की बात करे तो इस कंपनी ने बीते वर्ष के महीने में अक्टूबर दिसम्बर के तिमाही नतीजों का ऐलान किया था और कंपनी ने बताया था कि कंपनी का मुनाफा दो सौ सताइस करोड़ रुपए रहा था। इस दौरान कंपनी की आमदनी करीब 3725 करोड़ रुपए से बढ़ कर 4475 करोड़ रुपए हो गई थी।
ऐसे हुई थी पतंजलि की शुरुआत :अब अगर हम पतंजलि की बात करे तो एक स्टोरी के मुताबिक इसकी शुरुआत साल 1995 में हुई थी, यानि इस साल पतंजलि कंपनी का रजिस्ट्रेशन हुआ था और तब बाबा रामदेव तथा उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने महज तेरह हजार रुपए में पतंजलि का रजिस्ट्रेशन करवाया था। बता दे कि तब दोनों के पास केवल पैंतीस सौ रुपए थे और उन्होंने किसी तरह दोस्तों से उधार लेकर रजिस्ट्रेशन शुल्क चुकाया था। इसके इलावा बाबा रामदेव ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उन दिनों वे हरियाणा और राजस्थान के शहरों में हर साल करीब पचास योग कैंप लगाते थे और तब वह अक्सर हरिद्वार की सड़कों पर स्कूटर भी चलाते थे।
जब कि साल 2002 में गुरु शंकरदेव की खराब सेहत के चलते बाबा रामदेव दिव्य योग ट्रस्ट का चेहरा बने और उनके दोस्त बालकृष्ण ने ट्रस्ट के फाइनेंस की जिम्मेदारी संभाली। इसके साथ ही कर्मवीर को ट्रस्ट का प्रशासक बनाया गया था। बस तब से गुरुकुल के जमाने से ही ये तीनों दोस्त पतंजलि योगपीठ के आर्थिक साम्राज्य को आगे बढ़ा रहे है। वही हरिद्वार में दिव्य योग ट्रस्ट के बैनर तले बाबा रामदेव ने देश और विदेश में काफी जोरों शोरों से योग शिविर भी लगाने शुरू कर दिए थे। जी हां जो सिलसिला हरियाणा के गांवों से शुरू हुआ था, वह गुजरात और दिल्ली से होते हुए मुंबई तक पहुंच गया था।
कैसे शुरू हुआ था आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का कारोबार:हालांकि शुरुआत में बाबा रामदेव के योग शिविर में दो से ढाई सौ लोग आते थे लेकिन जैसे जैसे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी, वैसे वैसे उनके शिविरों में लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ती चली जा रही थी। बता दे कि बाबा रामदेव के ट्रस्ट का मकसद आम लोगों के बीच योग और आयुर्वेद के प्रयोग को लोकप्रिय बनाना था। ऐसे में बाबा रामदेव बताते है कि पहली बार उन्हें जो पचास हजार रुपए का दान मिला था, उसी से उन्होंने आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का कारोबार शुरू किया था, जो अब हजारों करोड़ रूपए तक पहुंच चुका है।
बहरहाल साल 1995 में पहला दिव्य योग ट्रस्ट, फिर साल 2006 में दूसरा पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट और उसके बाद तीसरा भारत स्वाभिमान ट्रस्ट बना। इस तरह बाबा रामदेव एक के बाद एक अपने ट्रस्ट बनाते चले गए और इससे उनका आर्थिक साम्राज्य भी तेजी से बढ़ता चला गया। वैसे अब तो आपको पता चल गया होगा कि आखिर अपनी कमाई का क्या करते है बाबा रामदेव और किस तरह से उन्होंने अपने सफर की शुरुआत की थी। तो दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी, इस बारे में हमें अपनी राय जरूर दीजियेगा।
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