New Delhi, 21 अगस्त . आज के दौर में लोग अपने अंदर की कमी को दूर करने से ज्यादा दूसरों में कमी ढूंढने की तलाश में रहते हैं. लोगों को सोच ऐसी हो गई है कि उन्हें लगता है कि वह जो कहते हैं, बोलते हैं वह एकदम सही है और दूसरा व्यक्ति जो कह रहा है वह गलत है उसमें सुधार की जरूरत है. हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य ‘वैष्णव की फिसलन’ उन लोगों पर सटीक बैठती है तो अपनी कमियों को छिपाने के लिए नैतिकता का मुखौटा पहन लेते हैं.
‘वैष्णव की फिसलन’ हिंदी साहित्य में एक ऐसी कालजयी रचना है, जो धार्मिक पाखंड और सामाजिक दिखावे पर करारा प्रहार करती है. इस व्यंग्य में परसाई ने “बचाव पक्ष का बचपन” जैसे प्रतीकों के माध्यम से यह दिखाया कि कैसे लोग अपनी कमियों को छिपाने के लिए नैतिकता का मुखौटा पहन लेते हैं.
आज के समाज में, जहां सोशल मीडिया पर दिखावटी भक्ति, फर्जी नैतिकता और आडंबर का बोलबाला है, परसाई का यह व्यंग्य और भी प्रासंगिक हो जाता है. चाहे वह धर्म के नाम पर ठगी हो या नैतिकता का ढोंग.
वैष्णव की फिसलन आज के दौर में हमें आईना दिखाता है, जहां लोग अपनी फिसलन को छिपाने के लिए मासूमियत का बहाना बनाते हैं. परसाई की तीखी लेखनी आज भी हमें यह सवाल पूछने को मजबूर करती है. क्या हमारा समाज वाकई बदल गया है, या बस पाखंड के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं.
हरिशंकर परसाई का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा था. कम उम्र में मां और पिता की मृत्यु के बाद चार छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने से हिंदी में एमए किया और शिक्षण में डिप्लोमा हासिल किया. वन विभाग और स्कूलों में नौकरी करने के बाद 1947 में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखन को चुना. जबलपुर से उनकी साहित्यिक पत्रिका वसुधा निकली, जो घाटे के कारण बंद हो गई, लेकिन उनकी लेखनी कभी नहीं रुकी.
‘परसाई से पूछें’ कॉलम की गूंज परसाई ने जबलपुर और रायपुर के अखबार देशबंधु में परसाई से पूछें कॉलम लिखा, जिसमें शुरू में हल्के-फुल्के सवालों के जवाब दिए जाते थे. धीरे-धीरे उन्होंने पाठकों को सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित किया. यह कॉलम इतना लोकप्रिय हुआ कि लोग अखबार का इंतजार करते थे.
हरिशंकर परसाई ने हिंदी साहित्य में व्यंग्य को न केवल एक विधा के रूप में स्थापित किया, बल्कि उसे सामाजिक बदलाव का हथियार बनाया. उनकी रचनाएं स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं और शोधार्थियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.
हिंदी साहित्य जगत उनकी इस देन के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा.
उनकी कुछ प्रकाशित कृतियां जो हिंदी को व्यंग्य को समझने वाले लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए. ‘हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चन्दन घिसैं, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, निठल्ले की डायरी, आवारा भीड़ के खतरे, जाने पहचाने लोग, कहत कबीर (व्यंग्य निबंध-संग्रह); पूछो परसाई से (साक्षात्कार) हरिशंकर परसाई को केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, मध्यप्रदेश का शिखर सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.
हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए हर साल उनके जन्म जयंती पर 22 अगस्त को साहित्य अकादमी में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
–
डीकेएम/
You may also like
Airtel 5G Plus : सिर्फ बड़े शहर ही नहीं, छोटे कस्बों में भी मिलेगा तेज इंटरनेट
तेजस्वी यादव राजनीति में दुकानदारी चलाने के लिए हवा में बातें करते हैं : दिलीप जायसवाल
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेस ने गाजा में तत्काल युद्धविराम का किया आह्वान
राज्यसभा में भी पारित हुआ ऑनलाइन गेमिंग विधेयक, मनी गेमिंग पर लगेगी रोक
IBPS Recruitment 2025: लिपिक संवर्ग में 10,000 से अधिक ग्राहक सेवा सहयोगी रिक्तियों के लिए आवेदन की लास्ट डेट आज