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नारायण श्रीधर बेंद्रे : भारतीय चित्रकला के युगपुरुष, रंगों के जरिए दिलाई वैश्विक पहचान

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New Delhi, 20 अगस्त . नारायण श्रीधर बेंद्रे भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में एक चमकता सितारा थे, जिन्होंने 20वीं सदी में अपनी अनूठी शैली के माध्यम से भारतीय चित्रकला को नए आयाम दिए. भारतीय चित्रकला की समृद्ध परंपरा को आधुनिकता के रंगों में ढालने वाले बेंद्रे ने लोक संस्कृति, प्रकृति और पाश्चात्य कला के समन्वय से एक विशिष्ट शैली विकसित की.

बड़ौदा समूह के प्रमुख सदस्य के रूप में उन्होंने भू-दृश्य चित्रकला और बिंदुवाद (पॉइंटिलिज्म) को नए आयाम दिए, जिससे वे भारतीय कला जगत में लोगों के लिए प्रेरणा का माध्यम बने. उनकी कृतियों ने भारतीय चित्रकला की पारंपरिक जड़ों को आधुनिक अभिव्यक्ति के साथ जोड़ने का काम किया.

21 अगस्त 1910 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्में नारायण श्रीधर बेंद्रे एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे. उन्होंने इंदौर के स्टेट आर्ट स्कूल में प्रारंभिक कला शिक्षा हासिल की और इसके बाद 1933 में Mumbai के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से चित्रकला में डिप्लोमा किया.

बेंद्रे ने अपने करियर की शुरुआत यथार्थवादी और प्रभाववादी शैली में की, जिसमें इंदौर स्कूल की भूदृश्य चित्रकला का प्रभाव था. बाद में उनकी कला में बदलाव आया.

1937-1939 तक उन्होंने कश्मीर के विजिटर्स ब्यूरो में काम किया और वहां घाटी के कई चित्र बनाए. 1947-50 के दौरान उन्होंने यूरोप, जपान, मध्य पूर्व और अमेरिका की यात्राएं कीं, जिससे उनकी कला पर आधुनिक पाश्चात्य शैलियों का प्रभाव पड़ा. इसके अलावा, 1948 में न्यूयॉर्क की विंडर मेयर गैलरी में उनकी प्रदर्शनी भी आयोजित हुई.

1950 से 1966 तक उन्होंने बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय में अध्यापन किया और बाद में डीन बने. यहां उन्होंने घनवाद, प्रभाववाद और अमूर्तन जैसी शैलियों के साथ प्रयोग किए.

भारतीय चित्रकला में अहम योगदान देने के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया. 1969 में उन्हें पद्मश्री और 1992 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

बेंद्रे की चित्रकला में वास्तुशिल्प रूप, प्रकृति और लोक जीवन की आकृतियां प्रमुख थीं. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में सूरजमुखी और तोता और गिरगिट शामिल हैं. उन्होंने बिंदुवाद का खूब उपयोग किया, जिसके कारण उन्हें बिंदुवादी चित्रकार भी कहा जाता है. उन्होंने 1942 में ‘छोड़ो भारत’ चित्र भी बनाया, जिसे आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया ने ‘पटेल ट्रॉफी’ से सम्मानित किया.

उनकी कला पर चीनी, जापानी और यूरोपीय इंप्रेशनिस्ट चित्रकारों का प्रभाव था. उन्होंने शांति निकेतन में नंदलाल बोस जैसे दिग्गजों के साथ भी काम किया. भारतीय चित्रकला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले बेंद्रे ने 19 फरवरी 1992 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

एफएम/एबीएम

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