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राजद सांसद मनोज झा ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग

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नई दिल्ली, 2 जून . राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने देश के समक्ष खड़ी चुनौतियों पर गंभीर चिंताएं जाहिर करते हुए संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. उन्होंने देश के सैन्य अभियानों, विदेशी हस्तक्षेप, सूचना तंत्र की भूमिका और राष्ट्रीय सुरक्षा के राजनीतिकरण जैसे मुद्दों पर संसद में पारदर्शी चर्चा की आवश्यकता बताई है.

मनोज झा ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित करते हुए लिखा, “मैं यह पत्र उन भारतीय नागरिकों की चिंताओं और भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिख रहा हूं, जो महसूस कर रहे हैं कि उन्हें अपने देश के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में अंधेरे में छोड़ दिया गया है, चाहे वह सीमा पार आतंकवाद और उसके भू-राजनीतिक निहितार्थों की प्रतिक्रिया हो. वे ‘संगठित अराजकता’ के बारे में चिंतित हैं जो पहले से ही ध्रुवीकृत समाज को गंभीर नुकसान पहुंचाने की धमकी देती है.”

उन्होंने संसद का विशेष सत्र बुलाने का आग्रह करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ हाल ही में सीमा पार की गई कार्रवाइयों, उनके प्रभावों और आगे की राह पर चर्चा की मांग की. उन्होंने कहा कि “पारदर्शिता और जवाबदेही की नागरिकों की मांग को देखते हुए” एजेंडा में विदेश नीति के मामलों में विदेशी सरकारों के हस्तक्षेप, इस तरह के संघर्षों के निहितार्थ और निर्णय लेने के लिए एक मजबूत शासन ढांचे की जरूरत, घरेलू मीडिया और सूचना पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार की चुनौतियां, और राजनीतिक तथा चुनाव अभियानों में देश के रक्षा बलों के निंदनीय, अवसरवादी और पूरी तरह से अरुचिकर उपयोग को शामिल करने की मांग की.

मनोज झा ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच शांति कायम करने का श्रेय खुद को दिए जाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने पत्र में लिखा, “अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कम से कम बारह बार भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने का श्रेय लिया है. आपकी सरकार में अमेरिकी प्रशासन ने किससे संपर्क किया …इन चर्चाओं में भारत ने क्या रुख या परिप्रेक्ष्य व्यक्त किया?”

उन्होंने कहा कि जब विदेशी नेता भारत की सुरक्षा चुनौतियों को हल करने का श्रेय लेते हैं, तो हमारे देश की वैश्विक स्थिति को झटका लगता है. यह हमारी संप्रभुता को कमजोर करता है. इस अमेरिकी हस्तक्षेप ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान को एक साथ ला दिया है.

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में संसद में चर्चा की मांग करते हुए उन्होंने लिखा है कि यूरोपीय संसदों को ब्रीफिंग मिली, अमेरिकी थिंक टैंक ने आकलन प्रस्तुत किए, जबकि भारतीय सांसदों को केवल दर्शक बना दिया गया है. यदि हमारे रक्षा बल की प्रतिबद्धता और क्षमता को देखते हुए ऑपरेशन सफल रहे, तो संसद को समझाने में कोई हिचकिचाहट क्यों होनी चाहिए? वैश्विक संसदीय आउटरीच मिशन से संकेत मिलता है कि भारत का मानना है कि वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को समझाने में विफल रहा है.

उन्होंने ऑपरेशन के दौरान मीडिया द्वारा पक्षपात और अपुष्ट खबरें चलाने पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि “मीडिया अराजकता” ने देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को कमजोर कर दिया. विदेशी दर्शकों ने देखा कि भारतीय मीडिया ने एक गंभीर सैन्य संकट के दौरान सटीकता पर नाटकीयता को प्राथमिकता दी. इसके अलावा, सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ नेताओं ने सनसनीखेज बयानों और पक्षपातपूर्ण टिप्पणियों के माध्यम से योगदान दिया.

मनोज झा ने पत्र में लिखा, “सरकार का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र को विस्तृत जानकारी दे और उसके बाद परिचालन उद्देश्यों, रणनीतिक परिणामों और भविष्य के सिद्धांतों पर चर्चा करे. संसद ऐसे ही राष्ट्रीय महत्व के मामलों के लिए मौजूद है. सरकार द्वारा अब तक विशेष सत्र बुलाने में की गई अनिच्छा या तो अपने स्वयं के कथन में आत्मविश्वास की कमी या जानबूझकर भ्रम पैदा करने का संकेत देती है. इनमें से कोई भी राष्ट्रीय हितों की पूर्ति नहीं करता.”

पीएसके/एकेजे

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