दिल्ली को रिंग रोड और पहला फ्लाईओवर देने वाले प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा का हाल ही में मंगलवार को निधन हो गया। वे विभाजन के बाद लाहौर से दिल्ली आए थे। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 16 साल थी। वे शुरू से ही राजनीति में रुचि रखते थे। उन्होंने दिल्ली को अपना शहर मान लिया था। वे दिल्ली में महानगर पार्षद, मुख्य कार्यकारी पार्षद (जो मुख्यमंत्री के बराबर होता है) और सांसद भी रहे। उन्होंने 1968 में रिंग रोड बनाने का विचार रखा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस विचार को तुरंत मंजूरी दी। 1970 में दिल्ली का पहला फ्लाईओवर भी उन्हीं के प्रयासों से बना। 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मनमोहन सिंह को हराया था। मल्होत्रा दिल्ली के हर कोने से वाकिफ थे। उन्होंने शहर के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा का दिल्ली से गहरा रिश्ता था। वे 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ के स्थापना दिवस समारोह में मौजूद थे। यह समारोह कनॉट प्लेस में शिवाजी स्टेडियम के पीछे रघुमल आर्य कन्या विद्यालय में हुआ था। यह दिखाता है कि वे दिल्ली की राजनीति में बहुत पहले से सक्रिय थे।
वे 1967 से 1972 तक दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद रहे। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने दिल्ली के लिए कई बड़े काम किए। साल 1968 में उन्होंने रिंग रोड बनाने का विचार तत्कालीन उपराज्यपाल ए.एन. झा के सामने रखा। उपराज्यपाल को यह विचार बहुत पसंद आया। इसके बाद प्रो. मल्होत्रा और उपराज्यपाल झा दोनों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले। इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को तुरंत हरी झंडी दिखा दी। इसके बाद रिंग रोड के निर्माण का काम शुरू हो गया। रिंग रोड का काम 1971 के आखिर में पूरा हुआ।
प्रो. मल्होत्रा अक्सर बताते थे कि रिंग रोड बनाने के पीछे एक खास सोच थी। उनका कहना था कि दूसरे राज्यों से आने वाले ट्रक रिंग रोड के रास्ते सीधे दूसरे राज्यों में चले जाएं। इससे दिल्ली के अंदर ट्रैफिक कम होगा। एक और विचार यह था कि रिंग रोड के पास बसी कॉलोनियों में रहने वाले लोग इस पर आकर अपनी मंजिल तक पहुंच सकें। यानी वे रिंग रोड पर आकर बस पकड़ सकें। उस समय दिल्ली में बहुत कम लोगों के पास अपनी कारें होती थीं। इसलिए बसों का महत्व बहुत ज्यादा था। रिंग रोड ने दिल्ली के लोगों की यात्रा को बहुत आसान बना दिया।
जब प्रो. मल्होत्रा दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद थे, तब दिल्ली में करीब डेढ़ दर्जन नए कॉलेज खुले। इससे दिल्ली के युवाओं को उच्च शिक्षा के बेहतर अवसर मिले। यह उनके शिक्षा के प्रति समर्पण को दिखाता है।
दिल्ली का पहला फ्लाईओवर भी प्रो. मल्होत्रा की देन है। अगर आप कभी मोती नगर की तरफ से शादीपुर डिपो फ्लाईओवर पर जाते हैं, तो आपको एक शिलापट्ट दिखेगा। उस पर फ्लाईओवर के उद्घाटन की जानकारी दी गई है। उस शिलापट्ट पर प्रो. मल्होत्रा का नाम भी लिखा है। यह दिल्ली का पहला फ्लाईओवर था, जो 1970 में बनकर तैयार हुआ। इस फ्लाईओवर के बनने से मोती नगर, कर्मपुरा, रमेश नगर, राजा गार्डन और राजौरी गार्डन जैसे इलाकों के हजारों लोगों की जिंदगी बदल गई। इन इलाकों के लोगों का दिल्ली के बाकी हिस्सों में आना-जाना बहुत आसान हो गया। इससे उनका समय भी बचा और यात्रा भी आरामदायक हो गई।
प्रो. मल्होत्रा का राजनीतिक जीवन भी बहुत शानदार रहा। उन्होंने 1999 के लोकसभा चुनाव में एक बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने BJP के टिकट पर चुनाव लड़ा और मनमोहन सिंह को हराया। उन्हें 52.2% वोट मिले थे। उन्होंने मनमोहन सिंह को बहुत बड़े अंतर से शिकस्त दी। यह मनमोहन सिंह का पहला लोकसभा चुनाव था। यह जीत प्रो. मल्होत्रा के राजनीतिक प्रभाव को दिखाती है।
इससे पहले, 1972 के दिल्ली महानगर परिषद के चुनाव में भी उन्होंने एक बड़ी हस्ती को हराया था। उन्होंने मशहूर अभिनेता मनोज कुमार की सास सविता बहन को पटेल नगर सीट से हराया था। सविता बहन दिल्ली कांग्रेस की एक बहुत बड़ी नेता थीं। उनकी हार इसलिए भी खास थी क्योंकि उनके लिए देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद प्रचार किया था। इसके बावजूद प्रो. मल्होत्रा ने उन्हें हरा दिया। यह उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक कौशल का प्रमाण था।
प्रो. मल्होत्रा के पिता का नाम कविराज खजान चंद था। उन्होंने ईस्ट निजामुद्दीन में क्वेटा डीएवी स्कूल की स्थापना की थी। यह दिखाता है कि उनके परिवार का शिक्षा और समाज सेवा से पुराना नाता था। प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा ने दिल्ली के विकास और राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा का दिल्ली से गहरा रिश्ता था। वे 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ के स्थापना दिवस समारोह में मौजूद थे। यह समारोह कनॉट प्लेस में शिवाजी स्टेडियम के पीछे रघुमल आर्य कन्या विद्यालय में हुआ था। यह दिखाता है कि वे दिल्ली की राजनीति में बहुत पहले से सक्रिय थे।
वे 1967 से 1972 तक दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद रहे। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने दिल्ली के लिए कई बड़े काम किए। साल 1968 में उन्होंने रिंग रोड बनाने का विचार तत्कालीन उपराज्यपाल ए.एन. झा के सामने रखा। उपराज्यपाल को यह विचार बहुत पसंद आया। इसके बाद प्रो. मल्होत्रा और उपराज्यपाल झा दोनों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले। इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को तुरंत हरी झंडी दिखा दी। इसके बाद रिंग रोड के निर्माण का काम शुरू हो गया। रिंग रोड का काम 1971 के आखिर में पूरा हुआ।
प्रो. मल्होत्रा अक्सर बताते थे कि रिंग रोड बनाने के पीछे एक खास सोच थी। उनका कहना था कि दूसरे राज्यों से आने वाले ट्रक रिंग रोड के रास्ते सीधे दूसरे राज्यों में चले जाएं। इससे दिल्ली के अंदर ट्रैफिक कम होगा। एक और विचार यह था कि रिंग रोड के पास बसी कॉलोनियों में रहने वाले लोग इस पर आकर अपनी मंजिल तक पहुंच सकें। यानी वे रिंग रोड पर आकर बस पकड़ सकें। उस समय दिल्ली में बहुत कम लोगों के पास अपनी कारें होती थीं। इसलिए बसों का महत्व बहुत ज्यादा था। रिंग रोड ने दिल्ली के लोगों की यात्रा को बहुत आसान बना दिया।
जब प्रो. मल्होत्रा दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद थे, तब दिल्ली में करीब डेढ़ दर्जन नए कॉलेज खुले। इससे दिल्ली के युवाओं को उच्च शिक्षा के बेहतर अवसर मिले। यह उनके शिक्षा के प्रति समर्पण को दिखाता है।
दिल्ली का पहला फ्लाईओवर भी प्रो. मल्होत्रा की देन है। अगर आप कभी मोती नगर की तरफ से शादीपुर डिपो फ्लाईओवर पर जाते हैं, तो आपको एक शिलापट्ट दिखेगा। उस पर फ्लाईओवर के उद्घाटन की जानकारी दी गई है। उस शिलापट्ट पर प्रो. मल्होत्रा का नाम भी लिखा है। यह दिल्ली का पहला फ्लाईओवर था, जो 1970 में बनकर तैयार हुआ। इस फ्लाईओवर के बनने से मोती नगर, कर्मपुरा, रमेश नगर, राजा गार्डन और राजौरी गार्डन जैसे इलाकों के हजारों लोगों की जिंदगी बदल गई। इन इलाकों के लोगों का दिल्ली के बाकी हिस्सों में आना-जाना बहुत आसान हो गया। इससे उनका समय भी बचा और यात्रा भी आरामदायक हो गई।
प्रो. मल्होत्रा का राजनीतिक जीवन भी बहुत शानदार रहा। उन्होंने 1999 के लोकसभा चुनाव में एक बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने BJP के टिकट पर चुनाव लड़ा और मनमोहन सिंह को हराया। उन्हें 52.2% वोट मिले थे। उन्होंने मनमोहन सिंह को बहुत बड़े अंतर से शिकस्त दी। यह मनमोहन सिंह का पहला लोकसभा चुनाव था। यह जीत प्रो. मल्होत्रा के राजनीतिक प्रभाव को दिखाती है।
इससे पहले, 1972 के दिल्ली महानगर परिषद के चुनाव में भी उन्होंने एक बड़ी हस्ती को हराया था। उन्होंने मशहूर अभिनेता मनोज कुमार की सास सविता बहन को पटेल नगर सीट से हराया था। सविता बहन दिल्ली कांग्रेस की एक बहुत बड़ी नेता थीं। उनकी हार इसलिए भी खास थी क्योंकि उनके लिए देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद प्रचार किया था। इसके बावजूद प्रो. मल्होत्रा ने उन्हें हरा दिया। यह उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक कौशल का प्रमाण था।
प्रो. मल्होत्रा के पिता का नाम कविराज खजान चंद था। उन्होंने ईस्ट निजामुद्दीन में क्वेटा डीएवी स्कूल की स्थापना की थी। यह दिखाता है कि उनके परिवार का शिक्षा और समाज सेवा से पुराना नाता था। प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा ने दिल्ली के विकास और राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
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