नई दिल्ली: करीब एक दशक की कोशिशों के बाद कश्मीर की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी है। पिछले तीन वित्त वर्ष में जो वास्तविक विकास दर दर्ज की गई है, वह इससे पहले के एक दशक से भी ज्यादा समय में कभी नहीं देखी गई। लेकिन, पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले ने धरती की जन्नत के भविष्य की तस्वीर बहुत ही धुंधली कर दी है। हमले की खबर फैलते ही पर्यटन उद्योग की कमर टूटने के खौफनाक संदेश मिलने शुरू हो चुके हैं। इकोनॉमी के सारे इंडिकेटर्स रेड सिग्नल दे रहे हैं। इस आर्टिकल में हम कश्मीर की इकोनॉमी की मौजूदा बुलंद उम्मीद और आने वाले दिनों की चिंताओं को रेखांकित कर रहे हैं। विकास की बेहतर रफ्तारपिछले पांच-छह वर्षों में खासकर कश्मीर घाटी में जिस तरह से आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदातों में कमी आई थी, उसने आर्थिक विकास दर को गति देने में काफी मदद की। पिछले तीन में से दो वित्त वर्षों में तो इस इसने राष्ट्रीय औसत को भी पीछे छोड़ दिया था। अगर वास्तविक जीडीपी (GDP) विकास दर के आंकड़ों को देखें तो यह सुखद संभावनाओं से भरे पड़े हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 में यह 3.2% था और 14-15 में तो माइनस में चला गया। कोविड महामारी के बाद भी यह स्थिति पैदा हुई। लेकिन, 2022-23 से इसने जो रफ्तार पकड़ी है, वह मार्च 2025 में खत्म हुए वित्त वर्ष तक लगातार बनी रही। सिर्फ 2023-24 में यह राष्ट्रीय औसत से थोड़ी कम रही। बीते वित्त वर्ष में भारत का वास्तविक जीडीपी विकास दर अगर 6.4% रही तो जम्मू-कश्मीर में यह 7.1% दर्ज किया गया। (आंकड़े नीचे देखें)
प्रति व्यक्ति आय में उछालआमतौर पर जम्मू कश्मीर की प्रति व्यक्ति आय (Per capita income) राष्ट्रीय औसत के 70% के आसपास घूमती रही है। लेकिन, पिछले एक दशक में इसने इस खाई को लगातार पाटना शुरू किया है और इसमें काफी तेजी से सुधार देखा जा रहा है। 2014-15 में यह 71.9% था, जो 2024-25 में बढ़कर 77.3% तक पहुंच गया। (ग्राफिक्स ऊपर देखें) टैक्स कलेक्शन में लगातार इजाफाअर्थव्यवस्था कितनी मजबूत है, इसे आंकने का एक महत्वपूर्ण पैरामीटर कर राजस्व संग्रह की स्थिति से भी है। बीते एक दशक में इसमें करीब 3 गुना बढ़ोतरी की उम्मीद पैदा हुई है। जैसे साल 2015-16 में यह मात्र 7,300 करोड़ रुपये था, लेकिन 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार यह लगभग 21 हजार करोड़ रुपये (बजट अनुमान) तक पहुंच सकता है। (ग्राफिक्स नीचे देखें)
जम्मू-कश्मीर: निवेश में धूमकिसी राज्य या देश में निवेश का क्या माहौल है, अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए यह बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। निवेशक कहीं भी तभी पैसा लगाते हैं, जब उन्हें इसका भरोसा होता है कि उनके निवेश सुरक्षित हैं और यह उनकी आमदनी का जरिया हो सकता है। माहौल अगर अनुकूल नहीं लगेंगे तो कोई भी निवेशक यह जोखिम लेने को तैयार नहीं होगा। कश्मीर इसका सबसे बेहतर उदाहरण है। जैसे एक दशक पहले यानी साल 2015-16 में (पूर्ववर्ती)राज्य में मात्र 319 करोड़ रुपये का निवेश आया और उसके बाद इसमें अक्सर बढ़ोतरी ही देखने को मिली। कोविड महामारी का असर यहां भी पड़ा जो कि स्वाभाविक था। लेकिन, आर्टिकल 370 हटने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में सुरक्षा बेहतर हुई और कोरोना का असर कम हुआ तो निवेश ने अचानक छलांग लगानी शुरू कर दी। जैसे साल 2021-22 में मात्र 377 करोड़ रुपये का निवेश हुआ था तो 2023-24 में यह बढ़कर 3,389 करोड़ रुपये हो गया। यही नहीं, अनुमानों के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2024-25 में यह 5,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है। लगभग एक दशक में यह 15 गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी है। (ग्राफिक्स नीचे देखें)
पहलगाम के बाद कमर टूटने का डरजम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में जो बूम देखा जा रहा है, उसका असली कारण ये है कि पिछले एक दशक में सुरक्षा के बेहतर होते हालात और खासकर आर्टिकल 370 हटने के बाद आतंकी वारदातों में आई कमी ने ऐसा माहौल तैयार किया कि टूरिज्म इंडस्ट्री के दिन फिर गए। पिछले साल केंद्र शासित प्रदेश घूमने पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या लगभग ढाई करोड़ तक पहुंच गई। बीते एक दशक में जम्मू-कश्मीर आने वाले सैलानियों की संख्या में करीब एक करोड़ की बढ़ोतरी साधारण नहीं है। लेकिन, पहलगाम में हुई एक आतंकी वारदात ने इस केंद्र शासित प्रदेश की अर्थव्यवस्था की कमर टूटने का डर पैदा कर दिया है। कश्मीर की अर्थव्यव्था: आगे क्या?सबसे पहला खराब संकेत हॉस्पिटैलिटी सेक्टर से मिल रहे हैं। यहां घूमने जाने वाले लोगों ने धड़ाधड़ बुकिंग रद्द कर दी है। इसके चलते ट्रैवल कंपनियां और होटल परेशान हैं। कारोबारी चिंतित हैं, लेकिन कुछ जानकारों को भरोसा है कि हालात जल्दी ही सुधरेंगे। पहलगाम आतंकी हमला के बाद कश्मीर से लौटने वाले पर्यटकों में अचानक इतनी बढ़ोतरी हुई है कि कैंसिलेशन तो हो ही रहा है, वहां से लोगों को निकालने के लिए विमान कंपनियों को अतिरिक्त उड़ान भरने पड़ रहे हैं। आने वाले दिनों में कश्मीर घूमने आने वाले सैलानियों की संख्या में कमी की आशंका को देखते हुए यहां जरूरी वस्तुओं की डिमांड भी घटने की रिपोर्ट है। भारतीय उद्योग समूहों ने भी इस संकट की घड़ी में पीड़ितों के साथ हमदर्दी दिखाई है और आशंका जताई है कि इससे घाटी में शांति और समृद्धि की संभावनाओं को बहुत बड़ा झटका लगा है।

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