अंकारा/इस्लामाबाद: पहलगाम आतंकी हमले से पहले से ही चीन, तुर्की और पाकिस्तान मिलकर भारत को घेरने की कोशिश में लगे हुए थे। लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर का आगाज किया, तो ये खतरनाक त्रिकोणीय गुट सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि आर्थिक तौर पर भी भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। दिल्ली के तीन दुश्मनों की ये धूरी में इकोनॉमिक, मिलिट्री, डिप्लोमेटिक स्तर पर भारत को घेरने की योजना बनाई है। इनका मकसद सिर्फ सिर्फ भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को ही रोकना नहीं, बल्कि भारत की जियो-पॉलिटिकल स्थिति को बाधित करना है। संडे गार्जियन में छपी रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को मिला मजबूत चीनी डिप्लोमेटिक और सैन्य मदद और इस्लामाबाद के हथियार भंडार में अंकारा की छाप भारत के लिए चिंता की है। भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले पाकिस्तानी हथियारों में 'मेड इन चायना' निशान बताता है, कि एशिया के जियो-पॉलिटिकल हालात एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजर रहा है।चीन पहले से ही सीपीईसी प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान को भारी भरकम कर्ज दे रखा है। जबकि चीन के साथ गठबंधन तुर्की के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, ऊर्जा परियोजनाओं और रक्षा सहयोग के रास्ते भी खोलता है। चीन के नेतृत्व वाले एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ साथ चीन के कई बैंकों ने हालिया समय में तुर्की को विकास के नाम पर भारी भरकम ऋण दिए हैं। जिससे तुर्की को अपनी वित्तीय स्थिति संभालने में मदद मिली है। पिछले कुछ सालों में चीन और तुर्की ने अपने संबंधों को विस्तार देते हुए स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप तक बढ़ाई है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद शहबाज शरीफ तुर्की के दौरे पर हैं और उनके साथ पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर भी हैं। ये भारत के खिलाफ मदद देने के लिए एर्दोगन को धन्यवाद देने गये हैं। चीन, तुर्की पाकिस्तान का 'एशिया प्लान'तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्गोदन की 'एशिया एन्यू इनिशिएटिव' में चीन के साथ दोस्ती सबसे बड़ा फैक्टर है। चीन के जरिए वो ब्रिक्स प्लस और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) तक पहुंचना चाहता है, जिसमें बीजिंग अब प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि तुर्की NATO का सदस्य है और वो यूरोपीय संघ में शामिल होने चाहता है, लेकिन पश्चिम के साथ उसके तनावपूर्ण रिश्ते काफी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। जिसकी वजह से अब तुर्की ने उइगर मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले अत्याचार पर बोलना बंद कर दिया है। इसके अलावा तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान और तुर्की की सेना ने चेरत में पाकिस्तान के स्पेशल ऑपरेशंस स्कूल में एक संयुक्त अभ्यास किया था, जिसमें पाकिस्तान के स्पेशल सर्विसेज ग्रुप की दो लड़ाकू टीमें और तुर्की के विशेष बलों के 36 कर्मी शामिल थे।इसके अलावा पाकिस्तान, तुर्की के ड्रोन खरीद रहा है, जिसका इस्तेमाल उसने हालिया समय में भारत के खिलाफ किया था। भारत के साथ संघर्ष के दौरान तुर्की ने अपने एक युद्धपोत को पाकिस्तान भेजा था, जबकि तुर्की के कम से कम 3 एयरक्राफ्ट हथियार लेकर पाकिस्तान उतरे थे। भारत के साथ सीजफायर होने के बाद फौरन पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार धन्यवाद करने बीजिंग पहुंच गये, जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तुर्की को धन्यवाद देने अब अंकारा में हैं। जहां उन्होंने तुर्की के राष्ट्रपकि एर्दोगन से मुलाकात की है। चीन, तुर्की और पाकिस्तान का ये गुट हर हाल में भारत के प्रभाव को रोकना चाहता है। वजह साफ है, चीन अपनी अर्थव्यवस्था को काफी आगे ले चुका है, पाकिस्तान को विकास से मतलब नहीं है और तुर्की ऑटोमन साम्राज्य को फिर से बनाने के सपने में जी रहा है। लिहाजा तीनों के हिट लिस्ट में सबसे ऊपर भारत है। कितना खतरनाक है चीन, तुर्की पाकिस्तान का गठजोड़?चीन और पाकिस्तान के बीच 60 बिलियन डॉलर का सीपीईसी प्रोजेक्ट है। तुर्की और चीन के बीच व्यापार 30 बिलियन डॉलर के आसपास है, जिसमें हथियारों, ड्रोन टेक्नोलॉजी और ड्यूल यूज टेक्नोलॉजी का बड़ा हिस्सा है। तुर्की और पाकिस्तान के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और रक्षा समझौतों के जरिए दोनों देश भारत के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। चीन, पाकिस्तान को JF-17 ब्लॉक III, VT-4 टैंक, HQ-9B मिसाइल सिस्टम और नॉर्दन वार थिएटर कमांड के जरिये युद्ध प्रशिक्षण दे रहा है, जो भारत के लिए खतरा है। तुर्की ने पाकिस्तान को अत्याधुनिक T129 ATAK हेलिकॉप्टर, स्मार्ट बम और UAVs की सप्लाई शुरू की है। साथ ही, पाकिस्तानी पायलटों को तुर्की में ट्रेनिंग भी दी जाती है। तुर्की और पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने की कोशिश में लगातार चीन का साथ पा रहे हैं। यूनाइटेड नेशंस, इस्लामिक देशों के संगठन OIC और सोशल मीडिया अभियानों में भारत के खिलाफ जमकर प्रोपेगेंडा चलाया जाता है। भारत के खिलाफ मुस्लिम दुनिया में गलत धारणाएं फैलाने और 'हिंदू राष्ट्र' की छवि गढ़ने का काम तुर्की-पाक मीडिया नेटवर्क और चीन समर्थित बॉट्स कर रहे हैं। दुश्मनों के गठजोड़ को कैसे काउंटर करे भारत?भारत को तुर्की के खिलाफ यूरोपीय देशों से नये सिरे से स्ट्रैटजिक संबंध बनाने होंगे, ताकि आतंकवादियों का समर्थन करने के लिए तुर्की के खिलाफ यूरोपीय देशों से दवाब बनाया जा सके। भारत को तुर्की के प्रभाव को संतुलित करने और महत्वपूर्ण ऊर्जा मार्गों को सुरक्षित करने के लिए पश्चिम एशिया में ईरान, यूएई और सऊदी अरब जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों या शायद इराक के साथ भी रणनीतिक संबंधों को गहरा करना चाहिए। तुर्की के दुश्मनों ग्रीस और साइप्रस के साथ भारत को खुलकर संबंध बनाने चाहिए और सीरिया में तुर्की के खिलाफ जंग चला रहे कु्र्दों के साथ भारत को संपर्क बनाने चाहिए। जियो-पॉलिटिक्स, जिसमें आपके दुश्मन किसी भी स्तर तक जाने का सोच रखते हैं, उनके साथ आप 'अच्छे बच्चे' बनकर नहीं रह सकते। कुर्द हथियार चाहते हैं और उन्हें हथियार मुहैया करवाना चाहिए। तुर्की को लगना चाहिए कि कुर्द के हथियार उन्हें गहरा चोट दे सकते हैं। भारत किसी भी हाल में अब तुर्की की एससीओ या ब्रिक्स प्लस का हिस्सा ना बनने थे। ये भारत के हाथ में है। बिना भारत की मंजूरी के तुर्की इन दोनों संगठनों में शामिल नहीं हो सकता है।चीन को काउंटर करने के लिए भारत को अब हर हाल में अपनी सैन्य क्षमता को नेक्स्ट लेवल पर ले जानी होगी। भारत को एडवांस फाइटर जेट्स चाहिए, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की क्षमता को तेजी से बढ़ाने की जरूरत है। इनके अलावा भारत को अपनी एक्ट ईस्ट नीति से ठोस परिणाम निकालने के लिए मजबूती से आगे बढ़ना चाहिए। नई दिल्ली को आसियान भागीदारों के साथ संबंधों को गहरा करना चाहिए, उन्हें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को प्रभावित करने वाली जियो-पॉलिटिक्स के बारे में बताना चाहिए। आसियान देशों के साथ व्यापार साझेदारी के विस्तार में निवेश करने से चीन के नेतृत्व वाली इस गठजोड़ के खिलाफ आर्थिक लाभ मिल सकता है, खासकर तब जब आसियान के कुछ देशों की चीन के साथ अपनी समस्याएं हैं, लिहाजा वे संबंधों में विविधता लाने के विकल्पों का स्वागत करेंगे और अपने सारे अंडे चीन की टोकरी में नहीं डालेंगे।
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