लेखिका: भाषा सिंह   
ये रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) क्या बला हैं? कैसे इसने विश्व कूटनीति पर अपना दबदबा बनाया? यह ऐसा सवाल है, जिसे हल किए बिना अमेरिका ने चीन पर जो यू-टर्न लिया है, उसे समझा नहीं जा सकता। 27 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को बताया कि वह चीन के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं। यह दिलचस्प बयान था क्योंकि इससे पहले चीन के खिलाफ अमेरिकी टैरिफ वॉर की घोषणाएं ही खबरें बनती थीं।
   
शक्ति संतुलन का हथियारयह कमाल हुआ रेयर अर्थ की वजह से, जिसमें चीन का वैश्विक स्तर पर दबदबा है। इनके प्रॉडक्शन का 70% कंट्रोल उसके पास है। चीन ने इसे वैश्विक शक्ति संतुलन का हथियार बनाया है। इन्हीं की वजह से ट्रंप को डाकना पड़ा। अमेरिकी रक्षा तीन एनर्जी डार्ट टेक उद्योग इन मिनरल्स के बिना नहीं चल सकते।
   
कई उद्योगों की जरूरतमिसाल के तौर पर, अमेरिका के F-35 फाइटर जेट में 418 किलो रेयर अर्थ इस्तेमाल होता है। इसी तरह, अमेरिकी नौसेना के विध्वंसक जहाजी बेड़े आर्ल बर्क डीडीजी 51 डिस्ट्रॉयर (Arleigh burke) में 2,600 किलो रेयर अर्थ एलिमेंट्स का इस्तेमाल होता है। यह तो सिर्फ अमेरिका के रक्षा क्षेत्र का हाल है। बाकी उद्योगों का भी इसके बिना काम चलना मुश्किल है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर स्मार्टफोन तक का निर्माण इसके बिना नहीं हो सकता।
   
जवाबी कदमयह अमेरिका की कमजोर नब्ज है, जिसे चीन ने दबा दिया। तभी डॉनल्ड ट्रंप उससे व्यापार समझौता करने को आगे आए। अमेरिका की चिप वॉर और टैरिफ वॉर के जवाब में चीन ने यह कदम उठाया। उसने कहा कि उसके रेयर अर्थ का जहां भी जो भी इस्तेमाल करेगा, चाहे वह कंपनी हो या देश, उसकी मंजूरी उसे लेनी होगी।
   
साल भर की राहतअब दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते के लिए जो फ्रेमवर्क बना है, उसके तहत चीन ने अमेरिका पर रेयर अर्थ मिनरल्स एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के संकेत दिए हैं। इसके बारे में अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट का यह ऐलान काफी मानीखेज है कि चीनी सामानों पर ट्रंप के प्रस्तावित 100% टैरिफ का खतरा पूरी तरह से टल गया है। बदले में चीन सोयाबीन खरीद शुरू करने और रेयर अर्थ मिनरल्स पर एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के लिए तैयार है।
   
लागत कम1990 से 2000 के बीच चीन ने बहुत कम लागत पर रेयर अर्थ मिनरल्स के उत्पादन - निर्माण और परिशोधन (रिफाइनिंग ) में उत्पादों से मुक्त कराएंगे। इसी दिशा में उन्होंने चीन पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान किया । दुनिया के बाकी देश अमेरिका के टैरिफ वॉर के आगे झुक गए, लेकिन चीन ने इसकी परवाह नहीं की। उसने कुछ भारी रेयर अर्थ और स्थायी मैगनेट श्रेणियों पर एक्सपोर्ट कंट्रोल बढ़ा दिया। इसका रक्षा, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, साफ सौर ऊर्जा प्रॉडक्ट्स और हाई टेक उद्योगों पर तुरंत असर पड़ा।
   
रेयर अर्थ की डीलऐसा भी नहीं है कि चीन के इस आधिपत्य से निकलने की अमेरिका ने कोशिश नहीं की या कर नहीं रहा है। यूक्रेन के साथ भी ट्रंप की डील का प्रमुख हिस्सा उसके रेयर अर्थ मिनरल्स पर कब्जे का ही है। एशिया में भी ट्रंप इनकी आपूर्ति हासिल करने के लिए ही दौरा कर रहे हैं। इस दिशा में जापान, मलयेशिया, वियतनाम व कंबोडिया से हुए उनके समझौतों को देखा जा सकता है। लेकिन इसे अमल में लाने में बहुत समय और धन लगेगा । ट्रंप की जिन व्यापार नीतियों की वजह से दुनिया परेशान है, उस पर चीन ने उन्हें पीछे हटने को मजबूर किया। उनके सामने कोई और विकल्प भी नहीं है क्योंकि वह चीन को नाराज नहीं कर सकते।
(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार है)
  
ये रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ खनिज) क्या बला हैं? कैसे इसने विश्व कूटनीति पर अपना दबदबा बनाया? यह ऐसा सवाल है, जिसे हल किए बिना अमेरिका ने चीन पर जो यू-टर्न लिया है, उसे समझा नहीं जा सकता। 27 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को बताया कि वह चीन के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं। यह दिलचस्प बयान था क्योंकि इससे पहले चीन के खिलाफ अमेरिकी टैरिफ वॉर की घोषणाएं ही खबरें बनती थीं।
शक्ति संतुलन का हथियारयह कमाल हुआ रेयर अर्थ की वजह से, जिसमें चीन का वैश्विक स्तर पर दबदबा है। इनके प्रॉडक्शन का 70% कंट्रोल उसके पास है। चीन ने इसे वैश्विक शक्ति संतुलन का हथियार बनाया है। इन्हीं की वजह से ट्रंप को डाकना पड़ा। अमेरिकी रक्षा तीन एनर्जी डार्ट टेक उद्योग इन मिनरल्स के बिना नहीं चल सकते।
कई उद्योगों की जरूरतमिसाल के तौर पर, अमेरिका के F-35 फाइटर जेट में 418 किलो रेयर अर्थ इस्तेमाल होता है। इसी तरह, अमेरिकी नौसेना के विध्वंसक जहाजी बेड़े आर्ल बर्क डीडीजी 51 डिस्ट्रॉयर (Arleigh burke) में 2,600 किलो रेयर अर्थ एलिमेंट्स का इस्तेमाल होता है। यह तो सिर्फ अमेरिका के रक्षा क्षेत्र का हाल है। बाकी उद्योगों का भी इसके बिना काम चलना मुश्किल है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर स्मार्टफोन तक का निर्माण इसके बिना नहीं हो सकता।
जवाबी कदमयह अमेरिका की कमजोर नब्ज है, जिसे चीन ने दबा दिया। तभी डॉनल्ड ट्रंप उससे व्यापार समझौता करने को आगे आए। अमेरिका की चिप वॉर और टैरिफ वॉर के जवाब में चीन ने यह कदम उठाया। उसने कहा कि उसके रेयर अर्थ का जहां भी जो भी इस्तेमाल करेगा, चाहे वह कंपनी हो या देश, उसकी मंजूरी उसे लेनी होगी।
साल भर की राहतअब दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते के लिए जो फ्रेमवर्क बना है, उसके तहत चीन ने अमेरिका पर रेयर अर्थ मिनरल्स एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के संकेत दिए हैं। इसके बारे में अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट का यह ऐलान काफी मानीखेज है कि चीनी सामानों पर ट्रंप के प्रस्तावित 100% टैरिफ का खतरा पूरी तरह से टल गया है। बदले में चीन सोयाबीन खरीद शुरू करने और रेयर अर्थ मिनरल्स पर एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के लिए तैयार है।
लागत कम1990 से 2000 के बीच चीन ने बहुत कम लागत पर रेयर अर्थ मिनरल्स के उत्पादन - निर्माण और परिशोधन (रिफाइनिंग ) में उत्पादों से मुक्त कराएंगे। इसी दिशा में उन्होंने चीन पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान किया । दुनिया के बाकी देश अमेरिका के टैरिफ वॉर के आगे झुक गए, लेकिन चीन ने इसकी परवाह नहीं की। उसने कुछ भारी रेयर अर्थ और स्थायी मैगनेट श्रेणियों पर एक्सपोर्ट कंट्रोल बढ़ा दिया। इसका रक्षा, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, साफ सौर ऊर्जा प्रॉडक्ट्स और हाई टेक उद्योगों पर तुरंत असर पड़ा।
रेयर अर्थ की डीलऐसा भी नहीं है कि चीन के इस आधिपत्य से निकलने की अमेरिका ने कोशिश नहीं की या कर नहीं रहा है। यूक्रेन के साथ भी ट्रंप की डील का प्रमुख हिस्सा उसके रेयर अर्थ मिनरल्स पर कब्जे का ही है। एशिया में भी ट्रंप इनकी आपूर्ति हासिल करने के लिए ही दौरा कर रहे हैं। इस दिशा में जापान, मलयेशिया, वियतनाम व कंबोडिया से हुए उनके समझौतों को देखा जा सकता है। लेकिन इसे अमल में लाने में बहुत समय और धन लगेगा । ट्रंप की जिन व्यापार नीतियों की वजह से दुनिया परेशान है, उस पर चीन ने उन्हें पीछे हटने को मजबूर किया। उनके सामने कोई और विकल्प भी नहीं है क्योंकि वह चीन को नाराज नहीं कर सकते।
(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार है)
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