लेखक: उमेश चतुर्वेदी
पांच साल के बजाय महज तीन साल एक महीने तीन दिन बाद हो रहा उपराष्ट्रपति चुनाव असाधारण ही कहा जाएगा। इस चुनाव में चुप्पियां चौतरफा हैं। भूतपूर्व हो चुके जगदीप धनखड़ भी चुप हैं और भावी उपराष्ट्रपति चुनने वाले दल भी। जिस सत्ताधारी गठबंधन एनडीए को उपराष्ट्रपति का नया उम्मीदवार चुनना है, वहां भी अभी कम से कम ऊपर से कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही।
पिछला मुकाबला: 2022 में छह अगस्त को हुए चुनाव ने जगदीप धनखड़ की ताजपोशी कराई थी। तब उन्हें 528 वोट मिले थे। विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को महज 182 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस बार विपक्ष की कोशिश ऐसा उम्मीदवार देने की होगी, जो कम से कम पिछली बार के 182 वोटों की सीमा रेखा को पार कर सके।
किसके कितने वोटर: उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य हिस्सा लेते हैं। फिलवक्त लोकसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 542 और राज्यसभा की 240 है। यानी उपराष्ट्रपति चुनाव के मतदाताओं की संख्या 782 है। अगर दोनों सदनों में NDA की कुल सदस्य संख्या देखें तो वह 422 होती है, जो बहुमत के आंकड़े से 41 अधिक है।
सेंध लगाने की तैयारी: यह तो आधिकारिक स्थिति हुई। चुनावों के दौरान दोनों पक्षों की कोशिश एक-दूसरे के खेमे में सेंध लगाने की भी रहेगी। अगर सत्ता पक्ष अपनी मौजूदा प्रभावी संख्या को लेकर बढ़त हासिल करता है तो उसका मनोबल बढ़ेगा। इसके बाद स्वाभाविक ही, वह कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा। इसके ठीक उलट अगर विपक्षी गठबंधन यानी INDIA ब्लॉक अपने मौजूदा प्रभावी वोट संख्या में थोड़ी भी बढ़ोत्तरी करता है तो इसे वह सरकार के खिलाफ अपनी नैतिक विजय के रूप में प्रदर्शित करेगा।
संघ और बीजेपी में राय-मशविरा: सत्ताधारी खेमे में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अपने हिसाब से उम्मीदवारों पर विचार कर रहे हैं। यही नहीं, जुलाई के आखिरी सप्ताह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह अरुण कुमार और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मुलाकात की खबर भी चर्चा में रही। कहते हैं, संघ ने अपने कैडर के किसी प्रतिबद्ध नेता को उपराष्ट्रपति बनाने का सुझाव दिया है। कैडर का नाम सुझाने के पीछे धनखड़ से मिले अनुभव का सबक बताया जा रहा है।
धनखड़ से निराशा: धनखड़ संघ या बीजेपी के कैडर नहीं रहे। उन्होंने राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी, फिर चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी में शामिल हुए। उसके बाद कांग्रेस की राजनीति कसे जुड़े। आखिरकार उन्होंने बीजेपी का दामन थामा और पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बने। यहां उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक तरह से प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाई। इसके बाद वह उपराष्ट्रपति बने। यहां भी शुरू में उन्होंने जिस तरह राज्यसभा चलाई, उससे विपक्ष इतना नाराज रहा कि उनके खिलाफ महाभियोग की भी नौबत आ गई थी। हालांकि बाद के दिनों में उनकी शैली बीजेपी की नीति और लाइन से दूर होती चली गई।
कयासों का दौर: संघ और बीजेपी कैडर की इस सोच के चलते बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर इस कैडर का उम्मीदवार बनाने का इस बार दबाव है। चूंकि इस बिन्दु पर संघ और बीजेपी एक साथ है, इसलिए कोई उलझन नहीं है। अंदरूनी तौर पर कई नाम चर्चा में हैं। मसलन, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री सत्यनारायण जटिया, मध्य प्रदेश के ही दूसरे नेता थावरचंद गहलोत के नाम तो चल ही रहे हैं, महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का नाम भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बिहार चुनाव पर नजरें: एक और तर्क यह चल रहा है कि इस बार उपराष्ट्रपति पद के लिए नाम फाइनल करते हुए बिहार के चुनाव का भी ध्यान रखा जाएगा। इसी आधार पर मीडिया के एक वर्ग ने नीतीश कुमार को भी भावी उपराष्ट्रपति बताना शुरू कर दिया था। हालांकि नीतीश के स्वास्थ्य की जो स्थिति है, उसे देखते हुए उनकी संभावना कम ही है। इस बीच जीतनराम मांझी ने अपनी संभावना तलाशनी शुरू कर दी है। मांझी दलित हैं और बिहार से हैं, इसलिए उन्हें हल्की-सी उम्मीद है कि कहीं छींका उनके नाम से ना टूट पड़े।
विपक्ष को है इंतजार: विपक्षी खेमे को इंतजार सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की घोषणा का है। एक बार उधर से नाम साफ हो जाए तो फिर उसके आधार पर विपक्ष भी कोई ताकतवर उम्मीदवार देने की कोशिश करेगा। चूंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टियों का व्हिप जारी नहीं होता, इसलिए कई बार उम्मीदवारों के व्यक्तित्व के आधार पर पार्टी लाइन से इतर वोट भी मिल जाते हैं। विपक्ष ऐसे किसी नाम की खोज में है, जो सत्ताधारी खेमे में हल्का ही सही, पर सेंध लगा सके।
साख का सवाल: सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई वाला NDA उन्हें ऐसा मौका देगा। मोदी-शाह की जोड़ी जिस ढंग से राजनीति करती है, उसमें ऐसे आसार तो नहीं दिखते। उलटे माना यह जा रहा है कि विपक्ष के लिए अपने घर को सुरक्षित रखना एक चुनौती होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
पांच साल के बजाय महज तीन साल एक महीने तीन दिन बाद हो रहा उपराष्ट्रपति चुनाव असाधारण ही कहा जाएगा। इस चुनाव में चुप्पियां चौतरफा हैं। भूतपूर्व हो चुके जगदीप धनखड़ भी चुप हैं और भावी उपराष्ट्रपति चुनने वाले दल भी। जिस सत्ताधारी गठबंधन एनडीए को उपराष्ट्रपति का नया उम्मीदवार चुनना है, वहां भी अभी कम से कम ऊपर से कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही।
पिछला मुकाबला: 2022 में छह अगस्त को हुए चुनाव ने जगदीप धनखड़ की ताजपोशी कराई थी। तब उन्हें 528 वोट मिले थे। विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को महज 182 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस बार विपक्ष की कोशिश ऐसा उम्मीदवार देने की होगी, जो कम से कम पिछली बार के 182 वोटों की सीमा रेखा को पार कर सके।
किसके कितने वोटर: उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य हिस्सा लेते हैं। फिलवक्त लोकसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 542 और राज्यसभा की 240 है। यानी उपराष्ट्रपति चुनाव के मतदाताओं की संख्या 782 है। अगर दोनों सदनों में NDA की कुल सदस्य संख्या देखें तो वह 422 होती है, जो बहुमत के आंकड़े से 41 अधिक है।
सेंध लगाने की तैयारी: यह तो आधिकारिक स्थिति हुई। चुनावों के दौरान दोनों पक्षों की कोशिश एक-दूसरे के खेमे में सेंध लगाने की भी रहेगी। अगर सत्ता पक्ष अपनी मौजूदा प्रभावी संख्या को लेकर बढ़त हासिल करता है तो उसका मनोबल बढ़ेगा। इसके बाद स्वाभाविक ही, वह कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा। इसके ठीक उलट अगर विपक्षी गठबंधन यानी INDIA ब्लॉक अपने मौजूदा प्रभावी वोट संख्या में थोड़ी भी बढ़ोत्तरी करता है तो इसे वह सरकार के खिलाफ अपनी नैतिक विजय के रूप में प्रदर्शित करेगा।
संघ और बीजेपी में राय-मशविरा: सत्ताधारी खेमे में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अपने हिसाब से उम्मीदवारों पर विचार कर रहे हैं। यही नहीं, जुलाई के आखिरी सप्ताह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह कार्यवाह अरुण कुमार और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मुलाकात की खबर भी चर्चा में रही। कहते हैं, संघ ने अपने कैडर के किसी प्रतिबद्ध नेता को उपराष्ट्रपति बनाने का सुझाव दिया है। कैडर का नाम सुझाने के पीछे धनखड़ से मिले अनुभव का सबक बताया जा रहा है।
धनखड़ से निराशा: धनखड़ संघ या बीजेपी के कैडर नहीं रहे। उन्होंने राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी, फिर चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी में शामिल हुए। उसके बाद कांग्रेस की राजनीति कसे जुड़े। आखिरकार उन्होंने बीजेपी का दामन थामा और पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बने। यहां उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक तरह से प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाई। इसके बाद वह उपराष्ट्रपति बने। यहां भी शुरू में उन्होंने जिस तरह राज्यसभा चलाई, उससे विपक्ष इतना नाराज रहा कि उनके खिलाफ महाभियोग की भी नौबत आ गई थी। हालांकि बाद के दिनों में उनकी शैली बीजेपी की नीति और लाइन से दूर होती चली गई।
कयासों का दौर: संघ और बीजेपी कैडर की इस सोच के चलते बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर इस कैडर का उम्मीदवार बनाने का इस बार दबाव है। चूंकि इस बिन्दु पर संघ और बीजेपी एक साथ है, इसलिए कोई उलझन नहीं है। अंदरूनी तौर पर कई नाम चर्चा में हैं। मसलन, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री सत्यनारायण जटिया, मध्य प्रदेश के ही दूसरे नेता थावरचंद गहलोत के नाम तो चल ही रहे हैं, महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का नाम भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बिहार चुनाव पर नजरें: एक और तर्क यह चल रहा है कि इस बार उपराष्ट्रपति पद के लिए नाम फाइनल करते हुए बिहार के चुनाव का भी ध्यान रखा जाएगा। इसी आधार पर मीडिया के एक वर्ग ने नीतीश कुमार को भी भावी उपराष्ट्रपति बताना शुरू कर दिया था। हालांकि नीतीश के स्वास्थ्य की जो स्थिति है, उसे देखते हुए उनकी संभावना कम ही है। इस बीच जीतनराम मांझी ने अपनी संभावना तलाशनी शुरू कर दी है। मांझी दलित हैं और बिहार से हैं, इसलिए उन्हें हल्की-सी उम्मीद है कि कहीं छींका उनके नाम से ना टूट पड़े।
विपक्ष को है इंतजार: विपक्षी खेमे को इंतजार सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की घोषणा का है। एक बार उधर से नाम साफ हो जाए तो फिर उसके आधार पर विपक्ष भी कोई ताकतवर उम्मीदवार देने की कोशिश करेगा। चूंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टियों का व्हिप जारी नहीं होता, इसलिए कई बार उम्मीदवारों के व्यक्तित्व के आधार पर पार्टी लाइन से इतर वोट भी मिल जाते हैं। विपक्ष ऐसे किसी नाम की खोज में है, जो सत्ताधारी खेमे में हल्का ही सही, पर सेंध लगा सके।
साख का सवाल: सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई वाला NDA उन्हें ऐसा मौका देगा। मोदी-शाह की जोड़ी जिस ढंग से राजनीति करती है, उसमें ऐसे आसार तो नहीं दिखते। उलटे माना यह जा रहा है कि विपक्ष के लिए अपने घर को सुरक्षित रखना एक चुनौती होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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