बीजिंग: चीन ने तकनीक की दुनिया में एक और कमाल कर दिया है। चीन ने थोरियम रिएक्टर से चलने वाले दुनिया के सबसे बड़े कार्गो जहाज को दुनिया के सामने पेश किया है। थोरियम को ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल करके चीन ने बहुत बड़ी सफलता को हासिल कर लिया है। इससे अब व्यवसायिक जहाज, नेवल इंजीनियरिंग और समुद्र के अंदर अभियान चलाने में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। दुनिया का यह सबसे बड़ा कार्गो जहाज 14 हजार स्टैंडर्ड शिपिंग कंटेनर ले जा सकता है। चीन ने अब इसके महत्वपूर्ण को दुनिया के सामने जारी कर दिया है। चीन ने जहां थोरियम से रिएक्टर बनाने में सफलता हासिल कर ली है, वहीं दुनिया के सबसे बड़े थोरियम भंडारों में से एक से लैस भारत कई साल गुजर जाने के बाद अभी भी 'विकास' ही कर रहा है।
साऊथ चाइना मार्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक यह कार्गो जहाज थोरियम आधारित मोल्टन साल्ट रिएक्टर से चलता है जो 200 मेगावाट बिजली पैदा करता है। यह ताकत उतनी ही है जितनी कि अमेरिकी नौसेना की सबसे आधुनिक सीवुल्फ क्लास की न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बी का S6W वाटर रिएक्टर पैदा करता है। परंपरागत परमाणु रिएक्टर यूरेनियम से चलते हैं और उन्हें चलाने के लिए विशाल कूलिंग सिस्टम की जरूरत होती है। वहीं नए चीनी रिएक्टर में थोरियम का इस्तेमाल किया गया है जो सुरक्षित है और ज्यादा बड़े पैमाने पर उपलब्ध है। थोरियम के रिएक्टर को कूलिंग के लिए पानी की जरूरत नहीं होती है।
चीन का दावा, थोरियम रिएक्टर ज्यादा सुरक्षित
थोरियम रिएक्टर से फायदा यह है कि यह छोटे होते हैं, शांत होते हैं और परंपरागत डिजाइन से ज्यादा सुरक्षित होते हैं। थोरियम रिएक्टर को अगर आगे सफलतापूर्वक लागू कर दिया गया तो व्यवसायिक शिपिंग में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। इसके बनाने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि रिएक्टर से पैदा हुई 200 मेगावाट की गर्मी को सीधे जहाजों को चलाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसकी बजाय यह सुपर क्रिटिकल कार्बन डायऑक्साइड जनरेटर को ऊर्जा देता है। यह Brayton cycle का इस्तेमाल करके ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली पैदा करने के लिए करता है।
चीनी वैज्ञानिकों का कहना है कि थोरियम से चलने वाले रिएक्टर से रेडिएशन का भी खतरा कम रहता है। यही नहीं चीन में यह बहुत बड़े पैमाने पर पाया भी जाता है। इनर मंगोलिया की एक खान में इतना थोरियम है जिससे 1000 साल तक बिजली की वर्तमान जरूरत को पूरा किया जा सकता है। अमेरिका ने साल 1960 के दशक में थोरियम से चलने वाले रिएक्टर को बनाने की योजना पर काम शुरू किया था लेकिन बाद में उसने बंद कर दिया। वहीं भारत की बात करें तो यहां पर दुनिया का करीब 25 फीसदी थोरियम भंडार मौजूद है। भारत दशकों से प्रयास कर रहा है कि थोरियम से अपार ऊर्जा पैदा करने के रास्ते तलाशे जाएं। चीन जहां मोल्टन साल्ट रिएक्टर बनाने में सफल हो गया है, वहीं भारत अब भी पिछड़ा हुआ है।
भारत नहीं कर पा रहा थोरियम का इस्तेमाल
भारत ने पहले चरण में सफलता हासिल करते हुए प्राकृतिक यूरेनियम की मदद से प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर का निर्माण कर लिया है लेकिन वह अभी भी तीसरे चरण में नहीं पहुंच पा रहा है। इसी चरण में थोरियम का इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जाता है। एक्सपर्ट का कहना है कि चीन की सफलता भारत के लिए खतरे की घंटी है। भारत को बहुत तेजी से तीसरे चरण की ओर बढ़ना होगा। भारत के पास दुनिया का करीब एक चौथाई थोरियम भंडार है। अनुमान के मुताबिक यह 457,000 से लेकर 508,000 टन के बीच है। भारत में केरल के मोनाजाइट बालू, तमिलनाडु और ओडिशा में पाया जाता है।
साऊथ चाइना मार्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक यह कार्गो जहाज थोरियम आधारित मोल्टन साल्ट रिएक्टर से चलता है जो 200 मेगावाट बिजली पैदा करता है। यह ताकत उतनी ही है जितनी कि अमेरिकी नौसेना की सबसे आधुनिक सीवुल्फ क्लास की न्यूक्लियर अटैक पनडुब्बी का S6W वाटर रिएक्टर पैदा करता है। परंपरागत परमाणु रिएक्टर यूरेनियम से चलते हैं और उन्हें चलाने के लिए विशाल कूलिंग सिस्टम की जरूरत होती है। वहीं नए चीनी रिएक्टर में थोरियम का इस्तेमाल किया गया है जो सुरक्षित है और ज्यादा बड़े पैमाने पर उपलब्ध है। थोरियम के रिएक्टर को कूलिंग के लिए पानी की जरूरत नहीं होती है।
चीन का दावा, थोरियम रिएक्टर ज्यादा सुरक्षित
थोरियम रिएक्टर से फायदा यह है कि यह छोटे होते हैं, शांत होते हैं और परंपरागत डिजाइन से ज्यादा सुरक्षित होते हैं। थोरियम रिएक्टर को अगर आगे सफलतापूर्वक लागू कर दिया गया तो व्यवसायिक शिपिंग में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। इसके बनाने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि रिएक्टर से पैदा हुई 200 मेगावाट की गर्मी को सीधे जहाजों को चलाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसकी बजाय यह सुपर क्रिटिकल कार्बन डायऑक्साइड जनरेटर को ऊर्जा देता है। यह Brayton cycle का इस्तेमाल करके ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली पैदा करने के लिए करता है।
चीनी वैज्ञानिकों का कहना है कि थोरियम से चलने वाले रिएक्टर से रेडिएशन का भी खतरा कम रहता है। यही नहीं चीन में यह बहुत बड़े पैमाने पर पाया भी जाता है। इनर मंगोलिया की एक खान में इतना थोरियम है जिससे 1000 साल तक बिजली की वर्तमान जरूरत को पूरा किया जा सकता है। अमेरिका ने साल 1960 के दशक में थोरियम से चलने वाले रिएक्टर को बनाने की योजना पर काम शुरू किया था लेकिन बाद में उसने बंद कर दिया। वहीं भारत की बात करें तो यहां पर दुनिया का करीब 25 फीसदी थोरियम भंडार मौजूद है। भारत दशकों से प्रयास कर रहा है कि थोरियम से अपार ऊर्जा पैदा करने के रास्ते तलाशे जाएं। चीन जहां मोल्टन साल्ट रिएक्टर बनाने में सफल हो गया है, वहीं भारत अब भी पिछड़ा हुआ है।
भारत नहीं कर पा रहा थोरियम का इस्तेमाल
भारत ने पहले चरण में सफलता हासिल करते हुए प्राकृतिक यूरेनियम की मदद से प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर का निर्माण कर लिया है लेकिन वह अभी भी तीसरे चरण में नहीं पहुंच पा रहा है। इसी चरण में थोरियम का इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जाता है। एक्सपर्ट का कहना है कि चीन की सफलता भारत के लिए खतरे की घंटी है। भारत को बहुत तेजी से तीसरे चरण की ओर बढ़ना होगा। भारत के पास दुनिया का करीब एक चौथाई थोरियम भंडार है। अनुमान के मुताबिक यह 457,000 से लेकर 508,000 टन के बीच है। भारत में केरल के मोनाजाइट बालू, तमिलनाडु और ओडिशा में पाया जाता है।
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