गाजा: इजरायल ने सैन्य रूप से भले ही गाजा का युद्ध जीत लिया हो, लेरिन हमास को खत्म करने में वो नामुमकिन रहा है। हमास हार जरूर गया हो, लेकिन अब पता चल रहा है कि उसने असल में हार नहीं मानी है और नये सिरे से वो अपने संगठन को फिर से बनाने में जुट गया है। इसीलिए एक तरफ जहां इजरायल की तमाम एजेंसियां अगला '7 अक्टूबर होने से रोकने' की कोशिश में जुट गई हैं, वहीं हमास ने अब संघर्ष का स्वरूप बदलना शुरू कर दिया है। हमास अब उन राजनीतिक ताकतों पर कब्जा करना चाहता है, जिनका मकसद इजरायल के खिलाफ नये युद्ध की शुरूआत करना है।
हमास अब रॉकेटों के बदले डाक टिकट और सुरंगों के बदले कार्यालय लेने को तैयार है। उसे अहसास हो गया है कि असली ताकत जमीन से हटकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आ गई है और अब वह फतह द्वारा वर्षों के संघर्ष के दौरान विकसित किए गए फिलिस्तीनी प्राधिकरण संस्थानों में एकीकरण के बदले गाजा पर सैन्य नियंत्रण छोड़ने को तैयार है। आपको बता दें फतह, फिलीस्तीन की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी स्थापना यासिर अराफात ने 1959 में की थी। ये एक तरह से फिलीस्तियों के लिए बनाया गया फिलिस्तीनी राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन है। 1990 के दशक में, ओस्लो समझौते के बाद, फतह को फिलिस्तीनी अथॉरिटी नेतृत्व करने का मौका मिला। फिलहाल इसकी कमान मह्मूद अब्बास के पास है, जो फिलीस्तीन के राष्ट्रपति रह चुके हैं।
हमास की बदली रणनीति क्या है?
इजरायली सैनिक एक तरफ जहां गाजा में हमास का सफाया कर रहे थे, वहीं फतह ने चुपचाप राजनयिक गलियारों में काम किया और फिलिस्तीनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को बनाए रखा, यहां तक कि उसे और भी मजबूत किया। जिसका नतीजा ये निकला है कि इजरायल अब गंभीर कूटनीतिक नुकसान का सामना कर रहा है। वह हेग में चल रहे मुकदमों के बोझ तले दबा हुआ है और अमेरिका में, खासकर युवा पीढ़ी के बीच, जनमत में भारी गिरावट आई है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग आधे युवा अमेरिकी मानते हैं कि 7 अक्टूबर की घटनाएं उचित थीं। इसके अलावा UNRWA जैसी एजेंसियां, जिन्हें इजरायल अपनी संप्रभुता के लिए बाधक मानता है, अब भी सक्रिय हैं।
मध्य-पूर्व में यह पैटर्न नया नहीं है। लेबनान में हिज्बुल्लाह पहले एक सशस्त्र गुट था, जिसने बाद में संसद और सत्ता में जगह बना लिया। मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड ने भी ऐसा ही किया, पहले आंदोलन, फिर सत्ता। अब वही रास्ता हमास अपनाने की कोशिश कर रहा है। इसके पीछे दो प्रमुख देशों- कतर और तुर्की का समर्थन है। दोनों देश मुस्लिम ब्रदरहुड के वैचारिक साझेदार हैं और "नए हमास" को वैध राजनीतिक पहचान दिलाने में जुटे हैं। कतर ने अरबों डॉलर "मानवीय सहायता" और गाजा में पुननिर्माण के नाम पर भेजे हैं और अल जजीरा ने हमास को राजनीतिक संगठन के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है।
हमास को खत्म करना चाहते हैं सऊदी-UAE
सिर्फ इजरायल ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब और UAE भी हमास को खत्म होना देखना चाहते हैं। ये दोनों देश भी हमास को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा मानते हैं। इनके लिए हमास सिर्फ एक आतंकी संगठन नहीं, बल्कि ऐसा राजनीतिक विचार है जो आधुनिकता और आर्थिक सुधारों के रास्ते में बाधक बन सकता है। इसलिए रियाद और अबू धाबी ने हमास को वैध बताने वाले किसी भी सम्मेलन का विरोध किया है। इन दोनों देशों ने हमास के समर्थन में चलाए गये हर कार्यक्रम का विरोध किया है। जैसे हाल ही में शर्म-अल-शेख में हुआ था, जहां डोनाल्ड ट्रंप मौजूद थे, लेकिन सऊदी और UAE नहीं।
इसीलिए अब डिप्लोमेटिक कमजोरी से बाहर निकलते हुए इजरायल को कुछ समझदारी भरे फैसले करने होंगे। पहला- उसे सऊदी अरब और यूएई से नजदीकी संबंध बनाने होंगे। दूसरा, दो मोर्चों पर आक्रामक कूटनीतिक कार्रवाई करना, यानि सीरिया में इजरायल की उपस्थिति बनाए रखना और तुर्की को दरकिनार करने के लिए साइप्रस और ग्रीस के साथ सहयोग को मज़बूत करना। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन को हर हाल में अपने साथ बनाए रखना होगा। अगर इजरायल ऐसा कर पाता है तो वो हमास को कंट्रोल कर सकता है, अन्यथा तुर्की और कतर की मदद से हमास इजरायल के लिए नया सिरदर्द बन सकता है।
हमास अब रॉकेटों के बदले डाक टिकट और सुरंगों के बदले कार्यालय लेने को तैयार है। उसे अहसास हो गया है कि असली ताकत जमीन से हटकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आ गई है और अब वह फतह द्वारा वर्षों के संघर्ष के दौरान विकसित किए गए फिलिस्तीनी प्राधिकरण संस्थानों में एकीकरण के बदले गाजा पर सैन्य नियंत्रण छोड़ने को तैयार है। आपको बता दें फतह, फिलीस्तीन की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी स्थापना यासिर अराफात ने 1959 में की थी। ये एक तरह से फिलीस्तियों के लिए बनाया गया फिलिस्तीनी राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन है। 1990 के दशक में, ओस्लो समझौते के बाद, फतह को फिलिस्तीनी अथॉरिटी नेतृत्व करने का मौका मिला। फिलहाल इसकी कमान मह्मूद अब्बास के पास है, जो फिलीस्तीन के राष्ट्रपति रह चुके हैं।
हमास की बदली रणनीति क्या है?
इजरायली सैनिक एक तरफ जहां गाजा में हमास का सफाया कर रहे थे, वहीं फतह ने चुपचाप राजनयिक गलियारों में काम किया और फिलिस्तीनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को बनाए रखा, यहां तक कि उसे और भी मजबूत किया। जिसका नतीजा ये निकला है कि इजरायल अब गंभीर कूटनीतिक नुकसान का सामना कर रहा है। वह हेग में चल रहे मुकदमों के बोझ तले दबा हुआ है और अमेरिका में, खासकर युवा पीढ़ी के बीच, जनमत में भारी गिरावट आई है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग आधे युवा अमेरिकी मानते हैं कि 7 अक्टूबर की घटनाएं उचित थीं। इसके अलावा UNRWA जैसी एजेंसियां, जिन्हें इजरायल अपनी संप्रभुता के लिए बाधक मानता है, अब भी सक्रिय हैं।
मध्य-पूर्व में यह पैटर्न नया नहीं है। लेबनान में हिज्बुल्लाह पहले एक सशस्त्र गुट था, जिसने बाद में संसद और सत्ता में जगह बना लिया। मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड ने भी ऐसा ही किया, पहले आंदोलन, फिर सत्ता। अब वही रास्ता हमास अपनाने की कोशिश कर रहा है। इसके पीछे दो प्रमुख देशों- कतर और तुर्की का समर्थन है। दोनों देश मुस्लिम ब्रदरहुड के वैचारिक साझेदार हैं और "नए हमास" को वैध राजनीतिक पहचान दिलाने में जुटे हैं। कतर ने अरबों डॉलर "मानवीय सहायता" और गाजा में पुननिर्माण के नाम पर भेजे हैं और अल जजीरा ने हमास को राजनीतिक संगठन के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है।
हमास को खत्म करना चाहते हैं सऊदी-UAE
सिर्फ इजरायल ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब और UAE भी हमास को खत्म होना देखना चाहते हैं। ये दोनों देश भी हमास को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा मानते हैं। इनके लिए हमास सिर्फ एक आतंकी संगठन नहीं, बल्कि ऐसा राजनीतिक विचार है जो आधुनिकता और आर्थिक सुधारों के रास्ते में बाधक बन सकता है। इसलिए रियाद और अबू धाबी ने हमास को वैध बताने वाले किसी भी सम्मेलन का विरोध किया है। इन दोनों देशों ने हमास के समर्थन में चलाए गये हर कार्यक्रम का विरोध किया है। जैसे हाल ही में शर्म-अल-शेख में हुआ था, जहां डोनाल्ड ट्रंप मौजूद थे, लेकिन सऊदी और UAE नहीं।
इसीलिए अब डिप्लोमेटिक कमजोरी से बाहर निकलते हुए इजरायल को कुछ समझदारी भरे फैसले करने होंगे। पहला- उसे सऊदी अरब और यूएई से नजदीकी संबंध बनाने होंगे। दूसरा, दो मोर्चों पर आक्रामक कूटनीतिक कार्रवाई करना, यानि सीरिया में इजरायल की उपस्थिति बनाए रखना और तुर्की को दरकिनार करने के लिए साइप्रस और ग्रीस के साथ सहयोग को मज़बूत करना। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन को हर हाल में अपने साथ बनाए रखना होगा। अगर इजरायल ऐसा कर पाता है तो वो हमास को कंट्रोल कर सकता है, अन्यथा तुर्की और कतर की मदद से हमास इजरायल के लिए नया सिरदर्द बन सकता है।
You may also like

चिराग पासवान की लोजपा ने प्रदेश प्रधान महासचिव मोहम्मद मोतिउल्लाह को पार्टी से किया निष्कासित

मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तानी सेना के जनरल की मुलाक़ात में क्या चर्चा हुई?

'द कश्मीर फाइल्स' में सतीश शाह को लेना चाहते थे विवेक अग्निहोत्री, डायलॉग पर नहीं बन पाई बात

दिल्ली की ये 5 जगहें नाइटआउट के लिए हैं फेमस सुबह` 4 बजे तक एन्जॉय करते हैं लो

गोवा : कारनजलेम बीच पर अनधिकृत तैराकी इवेंट पर एफआईआर, 3.26 लाख की ठगी का आरोप




