वॉशिंगटन: जोहरान ममदानी के न्यूयॉर्क के मेयर बनने की खबर को किसी मीडिया आउटलेट ने 'इलायची ने शहर पर कब्जा कर लिया' शीर्षक के साथ नहीं छापा। दरअसल इलायची का इतिहास ममदानी की जीत के कारणों से मेल खाता है। यह मूल्यवान मसाला व्यापार के इतिहास में अपेक्षाकृत अनदेखा किया गया है। ब्रिटिश, फ्रांसीसी और डच जैसे प्रमुख पश्चिमी औपनिवेशिक साम्राज्यों की रुचि काली इलायची के बजाय मिर्च, दालचीनी, लौंग और जायफल में रही। इलायची की लोकप्रियता इस्लामी दुनिया में ज्यादा थी, जहां इसका इस्तेमाल कॉफी में स्वाद और मुंह में ताजगी लाने वाली मिठाइयों में किया जाता था। ममदानी ने अपने प्रचार में यह काम अक्सर इस्तेमाल होने वाले माउथ फ्रेशनर के पैकेट से किया, जिसमें मुख्य रूप से इलायची के बीज होते थे।
ममदानी युगांडा और दक्षिण अफ्रीका में पले-बढ़े हैं और अपनी अफ्रीकी जड़ों को स्वीकार करने में उन्हें खुशी होती है। इलायची अक्सर अफ्रीकी व्यंजनों में शामिल होती है। खासतौर से इसलिए क्योंकि इसका खट्टा-मिर्च जैसा स्वाद अफ्रीकी मूल के मसालों जैसे पैराडाइज के दाने (अफ्रामोमम मेलेगुएटा) या इथियोपियाई कोरेरिमा (अफ्रामोमम कोरोरिमा) से मिलता-जुलता है। इसे कभी-कभी नकली इलायची भी कहा जाता है।
अफ्रीका में इलायचीइलायची की कीमत इसके उपयोग को सीमित करती है। इसका उपयोग मंडाजी पूर्वी अफ्रीकी डोनट या दक्षिण अफ्रीकी-भारतीय समुदाय की कई मिठाइयों में स्वाद के लिए किया जाता है। ममदानी ने वैश्विक पूंजी प्रणालियों के कामकाज से उत्पन्न असमानताओं और शोषण पर प्रहार किया है। यह इलायची के इतिहास के उस हिस्से में देखा जा सकता है, जो भारत में बहुत कम जाना जाता है।
साल 1914 में ग्वाटेमाला के एक जर्मन बागान मालिक ऑस्कर माजस क्लोफर ने मध्य अमेरिकी देश के उष्णकटिबंधीय उच्चभूमि में इलायची की खेती की। उन्होंने महसूस किया कि इसकी जलवायु केरल के करीब थी, जहां इलायची की उत्पत्ति हुई थी। वहां इस मसाले की खेती भारत की तुलना में अधिक गहनता से की जा सकती है।
बनाना रिपब्लिक का दौर'बनाना रिपब्लिक' के दौर में अमेरिकी फल कंपनियों ने मध्य अमेरिका में विशाल बागान विकसित किए। ग्वाटेमाला एक तरह से इलायची गणराज्य था, यह दुनिया का शीर्ष आपूर्तिकर्ता भी बना। इसकी इलायची सस्ती थी क्योंकि स्थानीय स्तर पर मांग कम थी और इसे स्थानीय कम वेतन वाले श्रमिक पैदा करते थे। मूल निवासियों के अधिकारों की वकालत के लिए 1992 का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले रिगोबर्टा मेन्चू भी ग्वाटेमाला में इलायची बीनने का काम करते थे।
शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी सहायता संगठनों ने कम्युनिस्ट विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए इलायची को नकदी फसल के रूप में बढ़ावा दिया। फिर भी इसका लाभ आमतौर पर बागान मालिकों और व्यापारियों को ही मिलता था। इस बीच सस्ती ग्वाटेमाला इलायची ने भारतीय उत्पादकों को कमजोर कर दिया। क्योंकि इलायची के पौधों की देखभाल का अमूमन काम महिला करती थीं।
भारत की इलायचीभारत ने अपनी इलायची को स्वाद में श्रेष्ठ बताने की कोशिश की लेकिन ग्वाटेमाला इलायची में असली गिरावट उसकी अपनी सफलता के कारण आई। इससे होंडुरास जैसे पड़ोसी देशों ने भी इसे उगाना शुरू कर दिया। भारत अब शीर्ष उत्पादक है, उसके बाद इंडोनेशिया है और ग्वाटेमाला तीसरे स्थान पर है।
ममदानी का इलायची से जुड़ाव पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। अमेरिकी दक्षिणपंथियों ने उन्हें वामपंथी करार दिया है। हालांकि उनकी शहरी नीतिगत स्थिति स्कैंडिनेवियाई कल्याणकारी मॉडल जैसी हैं। इसमें बाल देखभाल, सब्सिडी वाली स्कूली शिक्षा, किराया नियंत्रण और वृद्धों की देखभाल जैसे मुद्दों पर जोर है।
हालिया समय में मीठी ब्रेड दुनियाभर में तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। इलायची से बुने हुए बन कार्डेमुममाबुलर अमेरिकी दालचीनी रोल का एक विकल्प प्रदान करते हैं। शायद न्यूयॉर्क की बेकरियों को अपने नए मेयर के समर्थन में इन्हें बेचने की कोशिश करनी चाहिए।
ममदानी युगांडा और दक्षिण अफ्रीका में पले-बढ़े हैं और अपनी अफ्रीकी जड़ों को स्वीकार करने में उन्हें खुशी होती है। इलायची अक्सर अफ्रीकी व्यंजनों में शामिल होती है। खासतौर से इसलिए क्योंकि इसका खट्टा-मिर्च जैसा स्वाद अफ्रीकी मूल के मसालों जैसे पैराडाइज के दाने (अफ्रामोमम मेलेगुएटा) या इथियोपियाई कोरेरिमा (अफ्रामोमम कोरोरिमा) से मिलता-जुलता है। इसे कभी-कभी नकली इलायची भी कहा जाता है।
अफ्रीका में इलायचीइलायची की कीमत इसके उपयोग को सीमित करती है। इसका उपयोग मंडाजी पूर्वी अफ्रीकी डोनट या दक्षिण अफ्रीकी-भारतीय समुदाय की कई मिठाइयों में स्वाद के लिए किया जाता है। ममदानी ने वैश्विक पूंजी प्रणालियों के कामकाज से उत्पन्न असमानताओं और शोषण पर प्रहार किया है। यह इलायची के इतिहास के उस हिस्से में देखा जा सकता है, जो भारत में बहुत कम जाना जाता है।
साल 1914 में ग्वाटेमाला के एक जर्मन बागान मालिक ऑस्कर माजस क्लोफर ने मध्य अमेरिकी देश के उष्णकटिबंधीय उच्चभूमि में इलायची की खेती की। उन्होंने महसूस किया कि इसकी जलवायु केरल के करीब थी, जहां इलायची की उत्पत्ति हुई थी। वहां इस मसाले की खेती भारत की तुलना में अधिक गहनता से की जा सकती है।
बनाना रिपब्लिक का दौर'बनाना रिपब्लिक' के दौर में अमेरिकी फल कंपनियों ने मध्य अमेरिका में विशाल बागान विकसित किए। ग्वाटेमाला एक तरह से इलायची गणराज्य था, यह दुनिया का शीर्ष आपूर्तिकर्ता भी बना। इसकी इलायची सस्ती थी क्योंकि स्थानीय स्तर पर मांग कम थी और इसे स्थानीय कम वेतन वाले श्रमिक पैदा करते थे। मूल निवासियों के अधिकारों की वकालत के लिए 1992 का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले रिगोबर्टा मेन्चू भी ग्वाटेमाला में इलायची बीनने का काम करते थे।
शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी सहायता संगठनों ने कम्युनिस्ट विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए इलायची को नकदी फसल के रूप में बढ़ावा दिया। फिर भी इसका लाभ आमतौर पर बागान मालिकों और व्यापारियों को ही मिलता था। इस बीच सस्ती ग्वाटेमाला इलायची ने भारतीय उत्पादकों को कमजोर कर दिया। क्योंकि इलायची के पौधों की देखभाल का अमूमन काम महिला करती थीं।
भारत की इलायचीभारत ने अपनी इलायची को स्वाद में श्रेष्ठ बताने की कोशिश की लेकिन ग्वाटेमाला इलायची में असली गिरावट उसकी अपनी सफलता के कारण आई। इससे होंडुरास जैसे पड़ोसी देशों ने भी इसे उगाना शुरू कर दिया। भारत अब शीर्ष उत्पादक है, उसके बाद इंडोनेशिया है और ग्वाटेमाला तीसरे स्थान पर है।
ममदानी का इलायची से जुड़ाव पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। अमेरिकी दक्षिणपंथियों ने उन्हें वामपंथी करार दिया है। हालांकि उनकी शहरी नीतिगत स्थिति स्कैंडिनेवियाई कल्याणकारी मॉडल जैसी हैं। इसमें बाल देखभाल, सब्सिडी वाली स्कूली शिक्षा, किराया नियंत्रण और वृद्धों की देखभाल जैसे मुद्दों पर जोर है।
हालिया समय में मीठी ब्रेड दुनियाभर में तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। इलायची से बुने हुए बन कार्डेमुममाबुलर अमेरिकी दालचीनी रोल का एक विकल्प प्रदान करते हैं। शायद न्यूयॉर्क की बेकरियों को अपने नए मेयर के समर्थन में इन्हें बेचने की कोशिश करनी चाहिए।
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