वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट के लिए लगातार ऑफर दे रहे हैं। अमेरिका दबाव डाल रहा है कि भारत पहली बार अमेरिकी फाइटर जेट खरीदे। यह वही एफ-35 फाइटर जेट है जिसे एलन मस्क कबाड़ बता चुके हैं। इस बीच एक और खुलासे ने टेंशन बढ़ा दी और कई एक्सपर्ट कह रहे हैं कि एफ-35 विमान से भारत के दूर रहने में ही भलाई है। ताइवान को लेकर तनाव बढ़ रहा है और विशेषज्ञों का कहना है कि जब कभी भी चीन और अमेरिका के बीच युद्ध होगा, उस समय एफ-35 फाइटर जेट अहम भूमिका निभाएंगे। इस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट को अमेरिका ने अपने 10 सहयोगी देशों को बेचा है जिसमें चीन का पड़ोसी जापान भी शामिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका के इस सबसे घातक फाइटर जेट को चीन मिसाइल दागे ही मौत की नींद सुला सकता है। आइए समझते हैं...
अमेरिका सऊदी अरब से लेकर तुर्की तक को एफ-35 फाइटर जेट बेचना चाहता है। कई लोगों ने चेतावनी दी कि अमेरिका के पास इस लड़ाकू विमान का किल स्विच है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका नहीं चीन के पास एफ-35 फाइटर जेट का असली किल स्विच है। आलम यह है कि अगर चीन चाहे तो मात्र एक कदम से अमेरिका के सारे एफ-35 फाइटर जेट जमीन पर आ सकते हैं। एफ-35 ही नहीं बल्कि अमेरिका के कई हथियार चीन चाहे तो बेकार कर सकता है। इसके लिए उसे कोई मिसाइल नहीं चलाना होगा। इसमें वर्जीनिया क्लास की परमाणु सबमरीन, ड्रेस्ट्रायर, हथियारबंद प्रीडेटर ड्रोन, टॉमहॉक क्रूज मिसाइल, शक्तिशाली JDAM बम और शक्तिशाली रेडार बेकार हो जाएंगे।
चीन के बिना पंगु हो जाएगा अमेरिका का रक्षा उद्योग
असल में चीन की रेअर अर्थ और अन्य जटिल तत्वों में महारथ हासिल है। चीन न केवल रेअर अर्थ का सबसे बड़ा उत्पादक है बल्कि उपभोक्ता भी है। चीन इसका सबसे ज्यादा निर्यात भी करता है। अमेरिका रक्षा क्षेत्र में अपनी तकनीकी बढ़त के लिए बुरी तरह से चीन पर निर्भर है और 80 फीसदी अमेरिकी हथियार चीन के रेअर अर्थ का इस्तेमाल करते हैं। अगर चीन अमेरिका को रेअर अर्थ की आपूर्ति रोक देता है तो ट्रंप के हथियार बेकार हो जाएंगे। अमेरिका का रक्षा उद्योग हांफने लगेगा। चीन दुनिया का 90 फीसदी रेअर अर्थ रिफाइन करता है। चीन 98.8 फीसदी रिफाइन किया हुआ गैलियम बनाता है। गैलियम का इस्तेमाल जीपीएस सिस्टम और रडार बनाने में किया जाता है।
अमेरिका के लड़ाकू विमानों का एयरफ्रेम और मिसाइल मैग्निसियम का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। वहीं ग्रेफाइट और फ्लोरस्पार की मदद से रॉकेट प्रपल्सन, लेजर और परमाणु ईंधन को बनाया जाता है। इन तीनों ही मिनरल पर चीन का दबदबा है। चीन इसके निर्यात में लगातार अड़चने डाल रहा है। अमेरिका अब एफ-47 फाइटर जेट बना रहा है ताकि चीन को टक्कर दी जा सके। हालांकि इसको बनाने के लिए भी अमेरिका को चीन से ही रेअर अर्थ लेना होगा। एक अनुमान के मुताबिक एक एफ-35 फाइटर जेट बनाने के लिए 400 किलोग्राम रेअर अर्थ का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं वर्जीनिया क्लास के परमाणु पनडुब्बी को बनाने के लिए 4200 किलो रेअर अर्थ का प्रयोग किया जाता है।
भारत भी एफ-35 फाइटर से करेगा परहेज!
क्रूज मिसाइल, हथियारबंद ड्रोन, स्मार्ट बम और रडार को बनाने के लिए रेअर अर्थ मैग्नेट का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका की बेहद शक्तिशाली मिनटमैन-3 मिसाइल को बनाने के लिए भी चीन से क्रिटिकल मिनरल भेजा जाता है। चीन पर इतनी ज्यादा अमेरिकी निर्भरता भारत के लिए भी खतरे की घंटी है। भारत अगर एफ-35 फाइटर जेट लेता है तो उसे भी चीन के इस किल स्विच का सामना करना होगा। इसके अलावा एफ-35 काफी महंगा है जो भारत के लिए बड़े पैमाने पर लेना मुश्किल होगा। वहीं रूस ने भारत को सोर्स कोड के साथ सुखोई-57 देने का ऑफर दिया है।
अमेरिका सऊदी अरब से लेकर तुर्की तक को एफ-35 फाइटर जेट बेचना चाहता है। कई लोगों ने चेतावनी दी कि अमेरिका के पास इस लड़ाकू विमान का किल स्विच है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका नहीं चीन के पास एफ-35 फाइटर जेट का असली किल स्विच है। आलम यह है कि अगर चीन चाहे तो मात्र एक कदम से अमेरिका के सारे एफ-35 फाइटर जेट जमीन पर आ सकते हैं। एफ-35 ही नहीं बल्कि अमेरिका के कई हथियार चीन चाहे तो बेकार कर सकता है। इसके लिए उसे कोई मिसाइल नहीं चलाना होगा। इसमें वर्जीनिया क्लास की परमाणु सबमरीन, ड्रेस्ट्रायर, हथियारबंद प्रीडेटर ड्रोन, टॉमहॉक क्रूज मिसाइल, शक्तिशाली JDAM बम और शक्तिशाली रेडार बेकार हो जाएंगे।
चीन के बिना पंगु हो जाएगा अमेरिका का रक्षा उद्योग
असल में चीन की रेअर अर्थ और अन्य जटिल तत्वों में महारथ हासिल है। चीन न केवल रेअर अर्थ का सबसे बड़ा उत्पादक है बल्कि उपभोक्ता भी है। चीन इसका सबसे ज्यादा निर्यात भी करता है। अमेरिका रक्षा क्षेत्र में अपनी तकनीकी बढ़त के लिए बुरी तरह से चीन पर निर्भर है और 80 फीसदी अमेरिकी हथियार चीन के रेअर अर्थ का इस्तेमाल करते हैं। अगर चीन अमेरिका को रेअर अर्थ की आपूर्ति रोक देता है तो ट्रंप के हथियार बेकार हो जाएंगे। अमेरिका का रक्षा उद्योग हांफने लगेगा। चीन दुनिया का 90 फीसदी रेअर अर्थ रिफाइन करता है। चीन 98.8 फीसदी रिफाइन किया हुआ गैलियम बनाता है। गैलियम का इस्तेमाल जीपीएस सिस्टम और रडार बनाने में किया जाता है।
अमेरिका के लड़ाकू विमानों का एयरफ्रेम और मिसाइल मैग्निसियम का इस्तेमाल करके बनाया जाता है। वहीं ग्रेफाइट और फ्लोरस्पार की मदद से रॉकेट प्रपल्सन, लेजर और परमाणु ईंधन को बनाया जाता है। इन तीनों ही मिनरल पर चीन का दबदबा है। चीन इसके निर्यात में लगातार अड़चने डाल रहा है। अमेरिका अब एफ-47 फाइटर जेट बना रहा है ताकि चीन को टक्कर दी जा सके। हालांकि इसको बनाने के लिए भी अमेरिका को चीन से ही रेअर अर्थ लेना होगा। एक अनुमान के मुताबिक एक एफ-35 फाइटर जेट बनाने के लिए 400 किलोग्राम रेअर अर्थ का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं वर्जीनिया क्लास के परमाणु पनडुब्बी को बनाने के लिए 4200 किलो रेअर अर्थ का प्रयोग किया जाता है।
भारत भी एफ-35 फाइटर से करेगा परहेज!
क्रूज मिसाइल, हथियारबंद ड्रोन, स्मार्ट बम और रडार को बनाने के लिए रेअर अर्थ मैग्नेट का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका की बेहद शक्तिशाली मिनटमैन-3 मिसाइल को बनाने के लिए भी चीन से क्रिटिकल मिनरल भेजा जाता है। चीन पर इतनी ज्यादा अमेरिकी निर्भरता भारत के लिए भी खतरे की घंटी है। भारत अगर एफ-35 फाइटर जेट लेता है तो उसे भी चीन के इस किल स्विच का सामना करना होगा। इसके अलावा एफ-35 काफी महंगा है जो भारत के लिए बड़े पैमाने पर लेना मुश्किल होगा। वहीं रूस ने भारत को सोर्स कोड के साथ सुखोई-57 देने का ऑफर दिया है।
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