भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक हुए संघर्षविराम समझौते से चीन हक्का-बक्का रह गया है। वर्षों से दक्षिण एशिया में अस्थिरता को अपने रणनीतिक हितों के लिए भुनाने वाला चीन की इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से चिंता तय है।भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे सैन्य संघर्ष के बीच अमेरिका की मध्यस्थता में हुए सीजफायर समझौते ने न केवल जमीनी हालात बदले हैं, बल्कि चीन के क्षेत्रीय कूटनीतिक संतुलन को भी झटका दिया है।
चीन, जो लंबे समय से पाकिस्तान का रणनीतिक साझेदार रहा है, इस घटनाक्रम से बिना पूर्व जानकारी के अचंभित होना लाजिमी है। अब तक चीन के विदेश मंत्रालय या सरकारी मीडिया ने इस संघर्षविराम पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सूत्रों का कहना है कि बीजिंग इस घटनाक्रम को लेकर अंदरूनी विश्लेषण में जुटा है और यह समझने की कोशिश कर रहा है कि इस कदम से उसकी 'चाइना-पाक-एक्सिस' नीति पर क्या असर पड़ेगा।
भारत की कूटनीति और अमेरिका की रणनीति विशेषज्ञों के अनुसार, यह समझौता भारत की साफ-सुथरी और निर्णायक कूटनीति तथा अमेरिका की रणनीतिक मध्यस्थता का परिणाम है। भारत ने सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान को बातचीत की मेज तक आने को मजबूर किया, और अमेरिका ने दोनों पक्षों को रणनीतिक नरमी अपनाने के लिए मनाया।विश्लेषकों की राय में यह संघर्षविराम केवल सैन्य शांति नहीं, बल्कि एक बड़े कूटनीतिक बदलाव की शुरुआत हो सकती है जिसमें भारत का प्रभाव बढ़ेगा और चीन की रणनीतिक घेराबंदी कमजोर पड़ सकती
चीन के लिए तीन मोर्चों पर चुनौती भारत-पाक तनाव का घटाव जिससे चीन की "divide and dominate" नीति को झटका। अमेरिका की सक्रियता जिससे चीन की क्षेत्रीय प्रभुत्व नीति को चुनौती। पाकिस्तान का संभावित झुकाव अमेरिका की ओर जिससे चीन की पकड़ कमजोर हो सकती है।
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