पाँच साल। 35,493 महिलाओं की हत्या। वजह सिर्फ़ दहेज़ थी। ग्रेटर नोएडा की निक्की भाटी हों या जोधपुर की संजू बिश्नोई, सिर्फ़ ये दो महिलाएँ ही दहेज़ की बलि नहीं चढ़ीं। रोज़ाना लगभग 20 महिलाओं की दहेज़ के लिए हत्या कर दी जाती है। इन घटनाओं में, शादी के कई साल बाद भी, बहुओं को अक्सर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।
दहेज प्रथा का असर इतना गहरा है कि विवाह संस्था अक्सर एक 'लेन-देन' में बदल जाती है। महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना कहती हैं कि समाज में आज भी दहेज़ का खुलेआम महिमामंडन किया जाता है। वे कहती हैं, "मैं नोएडा में एक शादी में गई थी। दहेज़ में फॉर्च्यूनर और मर्सिडीज़ जैसी लग्ज़री कारें देखकर मैं हैरान रह गई।" योगिता भयाना आगे कहती हैं, "मैं दहेज का दंश बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, इसलिए मैं वहाँ से चली आई। यह विचार समाज के मूल में है। निक्की के पिता भिखारी सिंह ने एक टीवी कार्यक्रम में चर्चा के दौरान बार-बार कहा था कि उन्होंने अपने दामाद को एक टॉप मॉडल एसयूवी गिफ्ट की थी।
गहने और पैसे। अपनी बेटी की मौत पर चर्चा करने के बजाय, वह दहेज के बारे में बात कर रहे थे। भारत में 1961 से दहेज विरोधी कानून लागू है। लेकिन हकीकत यह है कि दूल्हे के परिवार से नकदी, गहने, कार और महंगे उपहारों की उम्मीद आज भी वैसी ही है। जब ये मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो बहू को ताने मारे जाते हैं। उसके साथ मारपीट की जाती है। कई बार उसकी हत्या भी कर दी जाती है। निक्की की शादी महज 17 साल की उम्र में विपिन भाटी से हुई थी। उसकी मौत के बाद पुलिस जांच में कई परतें खुल रही हैं। शुरुआती आरोप पति और ससुराल वालों पर लगे थे। सभी आरोपियों विपिन भाटी, सास दयावती, ससुर सतवीर और देवर रोहित को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि यह हत्या थी या आत्महत्या। विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी परिभाषा चाहे जो भी हो, निक्की की मौत दहेज और उत्पीड़न का नतीजा थी।
दहेज का यह खौफ सिर्फ निक्की भाटी तक ही सीमित नहीं है। राजस्थान के जोधपुर में सरकारी स्कूल की शिक्षिका संजू बिश्नोई ने अपनी तीन साल की बेटी को गोद में लेकर खुद को आग लगा ली। उनकी शादी को 10 साल हो चुके थे। वह अपनी नौकरी से अच्छी तनख्वाह कमा रही थीं। लेकिन उनके ससुराल वाले उनसे दहेज की मांग करते थे। इसके लिए उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जाता था।
मनोवैज्ञानिक डॉ. श्वेता शर्मा कहती हैं कि दहेज पितृसत्तात्मक नियंत्रण का एक हथियार बन गया है। उनके अनुसार, अगर महिलाएं अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों में भी हों, तो भी उन्हें आश्रित माना जाता है। दहेज पुरुष अहंकार को संतुष्ट करने का एक साधन है। इतिहास भी इस भयावह सच्चाई की पुष्टि करता है। दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय और वर्जीनिया विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन किया।
शोधकर्ताओं ने 74,000 से ज़्यादा शादियों का अध्ययन किया और बताया कि 90 प्रतिशत शादियों में दहेज शामिल था। 1950 और 1999 के बीच, यह 250 अरब डॉलर यानी 21 लाख करोड़ रुपये। इस बारे में वकील सीमा कुशवाहा कहती हैं कि अदालतें अक्सर इस तर्क से प्रभावित होती हैं कि शादी में दिया गया दहेज एक 'उपहार' है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए का दुरुपयोग करने वाली महिलाओं के दुर्लभ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके, असली पीड़ितों का पक्ष कमज़ोर किया जाता है। हमारी अदालतों में मानसिक और भावनात्मक यातना की पहचान करना अभी भी मुश्किल है, क्योंकि सिर्फ़ चोट के निशान ही सबूत माने जाते हैं। ऐसे में अक्सर पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता।
ग्रेटर नोएडा के सिरसा गाँव में 21 अगस्त को हुई दिल दहला देने वाली घटना ने साबित कर दिया कि दहेज आज भी सिर्फ़ एक प्रथा नहीं, बल्कि मौत का कारण बन गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़े एक भयावह सच्चाई बयां करते हैं, ये चौंकाने वाले हैं। निक्की और संजू के बाद, न जाने कितनी और महिलाएं दहेज के दानव का शिकार होने वाली हैं।
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