शिमला, 08 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Himachal Pradesh एक बार फिर मातम में डूब गया है. बिलासपुर जिले के झंडूता उपमंडल के भल्लू पुल के पास मंगलवार शाम हुआ बस हादसा न सिर्फ 16 जिंदगियों को निगल गया, बल्कि उसने 2017 के कोटरूपी और 2021 के निगुलसरी हादसे की वे डरावनी यादें भी ताजा कर दीं, जब पहाड़ों के दरकने से दर्जनों लोग मौत की नींद सो गए थे. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले दोनों हादसे अगस्त महीने में हुए थे, जब मानसून चरम पर था, जबकि इस बार का हादसा मानसून विदाई के 12 दिन बाद अक्तूबर में हुआ. इस हादसे ने दिवाली से पहले ही कई घरों की खुशियां छीन लीं.
बिलासपुर में पहाड़ दरका, कुछ ही पलों में मिट्टी में दब गई पूरी बस
मंगलवार शाम झंडूता के भल्लू पुल के पास मरोतम से घुमारवीं जा रही एक निजी बस पहाड़ी से अचानक गिरे मलबे की चपेट में आ गई. बारिश के बीच हुई इस घटना में बस पूरी तरह मिट्टी और पत्थरों के ढेर में दब गई. बस में 18 यात्री सवार थे, जिनमें से 16 की मौत हो गई. दो मासूम भाई-बहन 8 साल का शौर्य और 10 साल की आयूषी चमत्कारिक रूप से जिंदा बच निकले, लेकिन उनकी मां कमलेश कुमारी की मौत हो गई. दोनों बच्चों को उपचार के बाद एम्स बिलासपुर से छुट्टी दे दी गई है.
हादसे के बाद रातभर एनडीआरएफ, पुलिस और स्थानीय लोग बारिश और अंधेरे के बीच राहत व बचाव अभियान में जुटे रहे. बुधवार सुबह एक लापता बच्चे का शव भी बरामद कर लिया गया. इस दर्दनाक हादसे में झंडूता, घुमारवीं, नैना देवी, कलोल और हमीरपुर के बड़सर क्षेत्र के परिवारों के चिराग बुझ गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर शोक व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख और घायलों को पचास हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है.
मंडी का कोटरूपी हादसा: एक रात में उजड़ गए कई घर (12 अगस्त 2017)
12 अगस्त 2017 की रात मंडी जिला के कोटरूपी में भी कुछ ऐसा ही मंजर था. रात करीब दो बजे पहाड़ दरका और नीचे से गुजर रही एचआरटीसी की दो बसें मलबे में समा गईं. उस भयानक रात में 49 लोगों की मौत हो गई थी. पहाड़ से आए मलबे ने न केवल बसों को बल्कि आसपास के कई घरों और वाहनों को भी अपने साथ बहा दिया था. दर्जनों परिवारों के सिर से सहारा छिन गया, कई अब तक उस रात की दहशत नहीं भूल पाए हैं.
किन्नौर का निगुलसरी हादसा: पल भर में खत्म हो गईं 28 जिंदगियां (11 अगस्त 2021)
11 अगस्त 2021 को किन्नौर जिले के निगुलसरी में भी एक ऐसा ही काला दिन आया. भावानगर उपमंडल में अचानक पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा ढह गया. एचआरटीसी बस, टिपर, दो जीप और एक अखबार की गाड़ी समेत कई वाहन मलबे में दब गए. इस हादसे में 28 लोगों की मौत हुई, जबकि 13 लोगों को किसी चमत्कार से बचाया जा सका. एक सप्ताह तक एनडीआरएफ और प्रशासन की टीमें मलबे में शव तलाशती रहीं. स्थानीय लोग अपनों की सलामती की दुआ करते रहे, लेकिन प्रकृति की निर्ममता के आगे किसी की न चली.
तीनों हादसों में एक जैसी वजह, दरकते पहाड़ और बेहिसाब बारिश
तीनों हादसों में कारण लगभग एक ही रहा. पहाड़ों का दरकना और भारी वर्षा. मंडी और किन्नौर की त्रासदियां अगस्त महीने में हुई थीं, जब मानसून चरम पर था. वहीं बिलासपुर का हादसा मानसून की विदाई के 12 दिन बाद हुआ. इस बार भी पिछले तीन दिनों से पूरे प्रदेश में भारी बारिश हो रही थी. विशेषज्ञ मानते हैं कि लगातार निर्माण कार्यों, पहाड़ों में कटान और अनियोजित सड़क चौड़ीकरण से भूस्खलन का खतरा कई गुना बढ़ गया है.
हिमाचल में जानलेवा बन रही वर्षा, प्रकृति का बिगड़ रहा संतुलन
हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में मानसून हमेशा चुनौती रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह विनाशकारी बन गया है. कभी बाढ़ तो कभी भूस्खलन, हर साल सैकड़ों जिंदगियां लील लेता है. बिलासपुर, मंडी और किन्नौर की त्रासदियां इसी भयावह सच्चाई की याद दिलाती हैं कि पहाड़ अब सुरक्षित नहीं रहे. इस बार का हादसा इसलिए और दर्दनाक है क्योंकि दिवाली से पहले ही कई परिवारों के घरों के दीये बुझ गए.
भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में जरूरी है अलार्म सिस्टम और सतर्कता
हर साल इन हादसों के बाद जांच होती है, रिपोर्टें बनती हैं, पर सिफारिशें कागजों तक सीमित रह जाती हैं. बिलासपुर हादसा एक बार फिर चेतावनी है कि पहाड़ों की अनदेखी अब महंगी पड़ सकती है. भूस्खलन संभावित इलाकों में अर्ली वार्निंग सिस्टम, ड्रोन निगरानी और वाहनों की आवाजाही पर समयबद्ध नियंत्रण जैसे उपाय तत्काल लागू करने की जरूरत है.
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(Udaipur Kiran) / उज्जवल शर्मा
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