तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन जहां राज्य को ‘आधुनिक चिकित्सा, बेहतरीन सुविधाओं और मेडिकल टूरिज्म’ का हब बताते हैं, वहीं जमीनी हकीकत राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की जर्जर स्थिति उजागर कर रही है। सरकारी अस्पतालों की लचर व्यवस्था और चिकित्सा स्टाफ की भारी कमी ने स्वास्थ्य व्यवस्था की साख को गंभीर चुनौती दी है।
हाल ही में चेन्नई के एक बड़े अस्पताल में बिजली गुल होने से 70 से ज्यादा मरीज घंटों अंधेरे में रहे। आईसीयू जैसी संवेदनशील यूनिट में बिजली आपूर्ति की यह अनदेखी किसी बड़े हादसे को दावत दे सकती थी।
इसी तरह तिरुनेलवेली में मेडिकल लापरवाही की दुखद घटना सामने आई, जहां प्रशिक्षु ने डॉक्टर की जगह गलती से इंजेक्शन लगा दिया, जिससे एक बच्चे की मौत हो गई। यह घटना अस्पतालों में प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की भारी कमी और पर्यवेक्षण की कमी को उजागर करती है।
राज्य के सरकारी अस्पतालों में हजारों डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। काम का दबाव इतना अधिक है कि एक नर्स को दर्जनों मरीजों की देखरेख करनी पड़ती है, जिससे देखभाल की गुणवत्ता और मरीजों की सुरक्षा दोनों ही खतरे में है। चुनाव के दौरान संविदा कर्मचारियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स की सेवा शर्तों में सुधार के वादे किए गए थे, लेकिन आज भी अधिकांश कर्मचारी अस्थायी नियुक्ति, वेतन में कटौती और नौकरी की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य बजट का पैसा कथित तौर पर ठेकेदारों द्वारा हड़प लिया जाता है, जिससे ज़रूरी कर्मचारियों का मनोबल गिरा है।
अस्पतालों में पुराने वार्ड गिरने, सर्जरी की क्षमता घटने और सफाई के नाम पर लापरवाही के कई मामले सामने आए हैं। शौचालयों की गंदगी और गंदे पानी की निकासी से मरीजों की सेहत और भी दांव पर है। नियमों की अनदेखी आम है। एक निजी अस्पताल में नर्सों को वीडियो कॉल पर दिशा-निर्देश दिए जाते हुए पाया गया, जिसके चलते अस्पताल को बंद करना पड़ा। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाली इस तरह की घटनाओं ने भरोसे को झटका दिया है।
कन्याकुमारी में एक महिला को समय पर इलाज नहीं मिला, जिससे उसने अपना बच्चा खो दिया। वहीं सीने में दर्द की शिकायत लेकर आए एक फल विक्रेता को बिना जांच के डिस्चार्ज कर दिया गया, और रास्ते में उसकी मौत हो गई। ऐसी घटनाओं ने लोगों में आक्रोश और जवाबदेही की मांग को और तेज कर दिया है।
ये सभी घटनाएं दिखाती हैं कि तमिलनाडु का मेडिकल टूरिज्म का दावा जमीनी सच्चाई से बहुत दूर है। सरकार को तत्काल स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने, स्टाफ की भर्ती तेज करने और लापरवाहियों पर लगाम लगाने की जरूरत है, ताकि राज्य में आम जनता को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।
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